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संत कवि दादू दयाल
हमारे भारत देश में बहुत सारे साहित्यिक अपने
श्रेष्ठतम साहित्य के साथ साथ उनकी सहनशील,सहजता तथा सरलता अद्भुत सात्विक व्यक्तिमत्व पहचान कि छाप छोड़ने वालों में से अनोखे श्रेष्ठ जेष्ठ संत कवि श्री दादू दयाल जी भी एक प्रसिद्ध संत कवि थे।
उनकी अप्रतिम साहित्य तथा महानता के लिए जगत विख्यात और बहू प्रसिद्ध
संत श्रेणी में सब तरफ जाने जाते थे।
संत कवि दादू दयाल जी काव्य पढ़कर और उनकी महान व्यक्तित्व से प्रभावित होकर एक सेना अधिकारी को उनको मिलने कि इच्छा हुई। सेना अधिकारी ने सोचा कि संत कवि दादू दयाल जी का दर्शन लेकर आशिर्वाद प्राप्त कर,उनका शिष्य बनकर, निवृत्त जीवन अध्यात्मिक व्यतीत करते हुए जीए।ईस ख्याल से सेना अधिकारी अपने सेना कि घोड़े पर सवार होकर संत जिस गांव में रहते थे।उस गांव कि तरफ,उनको मिलने चल पड़े।पहाड़ी पर एक छोटा-सा गांव था।उस गांव के पास जाने वाले रास्ते के बाज़ू, एक बड़ा अशोक वृक्ष था।उस वृक्ष के नीचे कुछ फटे हुए कपड़े, इधर-उधर अलग अलग कपड़े कि टूकडों से सिलाई-कढ़ाई कि हुईं कपड़े पहनकर, सफेद बाल बिखरे हुए,बढ़ी दाढ़ी मुंछ वाला साधारण वयोवृद्ध व्यक्ति अपने में ही मग्न कुछ लिखते हुए बैठा था।उसी रास्ते से वह सेना अधिकारी गांव कि जा रहा था, उसने उस वृद्ध को देखा , उसके पास आकर,घोड़े पर बैठकर ही उसे जोर से चिल्लाते हुए पूछा -"अरे ऐ बुड्ढे, यहां से गांव अभी कितनी दूर है,ईस गांव में संत कवि दादू जी कहां मिल सकते है,बताओ।"लेकिन वह वयोवृद्ध, कुछ प्रत्युत्तर दिए बीना, वैसे ही मौन रहे।वह वयोवृद्ध उनके सवाल का जवाब न देने कारण, सेना अधिकारी गुस्से से फिर एक बार अधिक ऊंची आवाज में चिल्लाते हुए अहंकार में बोले-"ऐ बुड्ढे,गुंगे हो क्या,मैं जो पुछ रहा हूं,उसका सिधा जवाब नहीं दे सकते क्या ? इसपर भी कोई प्रतिक्रिया न देते हुए , मुस्कराते फिर से लिखना शुरू किया। उसकी ईस प्रवृत्ति से और भी गुस्सा आया, सेना अधिकारी को लगा यह बुढा जानबूझकर, मुझे अनदेखा कर रहा है।उस वृद्ध को डांटते हुए,ईस मुर्ख से उलझने बजाय आगे जाकर किसी को पूछना बेहतर होगा, ऐसे सोचते घोड़े पहाड़ की तरफ बढ़ने लगे। कुछ ही दूरी पर एक मोड़ था,उस मोड़ से मुड़कर आगे घुड सवारी करते हुए, एक कुटिया के पास आ गए, वहां एक युवक लकड़ी तोड़ रहा था।उस युवक के पास जाकर , घुरते हुए पुछा -"ऐ छोकरे संत कवि दादू दयाल जी कहां रहते हैं ?" तब वह युवक प्रणाम करते हुए सेना अधिकारी को बताया कि,"साहब आप तो बहुत आगे आए हैं। चलिए पीछे मुड़कर आइए, मैं आपको उनसे मिलवाता हूं।"यह बोलकर घोड़े कि लगाम पकड़कर , धीरे-धीरे अशोक पेड़ के नीचे लेकर आ गया।यही है संत कवि जी बताकर, वहां से चला गया।
सेना अधिकारी को पसीना आ गया, घबराहट से लड़खड़ाते हुए, संत जी पास आकर
नतमस्तक होकर, कुछ देर पहले मैंने आपको डांटा, अपमानित किया और गुस्से में
अनाप-शनाप बोला गदगद होकर आंसू भरे आंखों से सेना अधिकारी पछतावा करने लगा।
तब भी संत कवि दादू मौन थे। थोड़ा सा भी बिछलीत न होते अपने लेखन मग्न थे।
मैं आप का शिष्य बनने आया था।
सेना अधिकारी होने कि अहंकार होने के कारण
आपको समझ नहीं सका, मुझे माफ़ किजीए,
बिनती करने लगे।
तब वही एकाग्रता को देखकर, सेना अधिकारी अचंभित रह गए। और उनको लगा
मुझसे कितनी बड़ी ग़लती हो गई। इसके लिए मेरे खुद का अहंकार हि कारणीभूत है। अहंकार को त्यागना होगा। तभी मैं अच्छा सच्चा शिष्य बन सकता हूं।संत कवि दादू दयाल जी एक का मौन संदेश, सेना अधिकारी का मन परिवर्तित हुआ।
और सेना अधिकारी को लगा कि "अपना विचार कितना भी उदात्त हो, अपितु सदाचरणों में लाए बीना जीवन उजागर नहीं हो सकता।यह सिख लेकर सेना अधिकारी साधना पथ पर चल पड़े।
संतों का जीवनमुल्यों से भरी जीवनशैली हि हमारे लिए एक अद्भुत संदेश।
बीना उपदेश जीवन परिवर्तन करने वाले महान संत कवि दादू दयाल जी।
संत कवि दादू दयाल जी को अनंत अनंत प्रणाम।
© आत्मेश्वर