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हमारी फर्स्ट डेट
उस रोज़ मैंने उसे पहली बार देखा। वैसे तो हम हररोज कोलेज में मिलते थे लेकिन उस दिन तो वो कुछ अलग ही लग रही थी। उसने न तो कोई भारी-लंबी सारी पहन रखी थी न ही सिर पर कोई मुकुट था, फिर भी न जाने क्यों वो आज किसी प्रांत की राजकुमारी लग रही थी! उसे देखकर तो मेरी औकात ने भी बड़ी बेशर्म होकर मुझसे पूछ लिया कि, क्या यही है वो? यक़ीनन, आज वो कोई और ही थी।

हमारी नजरें तो उसके ठीक साढ़े बारह कदमों के बाद मिली; तब तक तो वो अपने आप में ही खोई हुई थी। इन साढ़े बारह कदमों में उसने अपनी ड्रेस की सिलवटों में छुपी करवटों को छंछेडा, अपने पल्लू को तीसरी-चौथी बार कमर पे बांधा होगा क्योंकि शायद उसने अपने होंठ दबा कर गाली भी दे दी थी। वो अपनी लट कान के पीछे रखने ही वाली थी कि उसके...