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सत्ता के भूखे भेड़िये

लोगों को ये क्यों नहीं समझ आता कि
ये सत्ता के गलियारे में जो भेड़िये-नुमा
इंसान खुले- आम जो घूम रहे हैं,
इन्हें हर वक़्त गर्म लहू चाहिए होता है पीने को,
जब भी कमी महसूस होती है,
या फिर ऐसा लगता है कि लोगों में इतनी ताक़त आ रही है
कि इन भेड़ियों को खदेड़ बाहर निकालना है,
ये सियासी मक्कार, अपनी लहू की प्यास बुझाने के लिए,
लोगोँ को, या फ़िर कहो अक़लमंद जाहिलों को,
कभी धर्म तो, कभी जाती, कभी हिजाब, कभी कुछ और
मुद्दा निकाल कर, आपस में लड़वाते हैं,
फिर जब हम पढ़े - लिखे सभ्य लोग एक दूसरे का खून बहाते हैं तो,
ये सियासी भेड़िये हमारे लहू से अपनी प्यास बुझाते हैं, मौज उड़ाते हैं,
मैं पूछती हूँ, आख़िर कब तक यूँही हम आपस में लड़कर इन भेड़ियों की लहू की
प्यास बुझाते रहेंगे, इन सियासी मक्कारों के हाथों की कठपुतली बने रहेंगे।

© Saaz