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जीवन संध्या
विषय-शाम /संध्या

सुबह से ही इस विषय पर सोचने लगा , बहुत सोचा पर कोई कविता ना मिली . समझ में आई तो बस एक बात , कि हम स्वभाव से ही स्वकेन्द्रित होते जा रहे हैं .

"उगते सूरज को प्रणाम करना तो संस्कारों में डल गया ,
मग़र उसकी उपेक्षा ही की जो ढल गया ."

जब घर में नवजीवन का आगमन होता है , हम हर्षोल्लास से भर जाते हैं , बधाइयाँ दी जाती हैं , नजरें उतारी जाती हैं . स्वाभाविक ही...