दोस्ती दुल्हन प्यार दूल्हा
रशिका और अनुराग बहुत अच्छे दोस्त थे
दोनों साथ में ही पढ़ते थे
अनुराग बनारस में रहता था उसके पापा की जॉब पहले प्रयागराज में लगी थी इसलिए अनुराग ने अपनी पढ़ाई
उसी शहर में रहकर पूरी की इंटर की पढ़ाई पूरी होने के बाद अनुराग अपने परिवार के साथ अपने निजी घर बनारस में रहने लगा था
उधर रशिका भी अपनी जॉब के लिए प्रयागराज से बनारस आयी और बनारस में रशिका एकदम अकेली थी बिल्कुल नया शहर था बनारस रशिका के लिए
रशिका बनारस में ही किराये पर रहने के लिए अपने लिए कमरा देखने लगी
और उसे कमरा मिल भी गया और रशिका अपने कमरे को साफ करने लगी
रशिका को अपने कमरे में पंखा लगवाना था तो इसलिए उसने अपनी मकान मालिक से कहा कि आंटी मुझे छत वाला पंखा लगवाना है यहाँ कोई बिजली का कारीगर मिल जायेगा
आंटी ने कहा क्यूँ बेटा पैसा मिस्त्री को पैसा दोगी
अभी मेरा बेटा आ जायेगा मैं उसको कह दूँगी वो लगा देगा पंखा
बस हमें आज तुम अपने हाथ की चाय बनाकर पिला देना इस पर रशिका ने हँसते हुए कहा आंटी सिर्फ़ चाय से थोड़ी न बात बनेगी मैं नमकीन भी बनाऊँगी ।
रशिका अपने कमरे को सजा रही थी क्यूँकी उसे घर की साज सजावट करने का बहुत शौक था और उसका कहीं कोई अपना घर भी नहीं था
इसलिए रशिका बहुत मन से एकदम अपना घर मानकर कमरे को सजा रही थी।
रशिका स्टूल पर चढ़ कर कुछ तस्वीर दीवार पर लगा रही थी तभी मकान मालिक का लड़का दरवाजा खटखटाता है रशिका को लगता है कि आंटी आयीं हैं तो वो अंदर से ही कहती है आंटी दरवाजा खुला है अन्दर आप आ जाईये
रशिका नीचे उतर कर अनुराग को देखती है और कहती है तुम यहाँ तुम तो प्रयागराज में रहते थे न
तब अनुराग कहता है वहाँ पर मैं रहता था पर मेरा निजी घर यही है पापा आर्मी में थे न तो इसलिए वहाँ पर घर मिला था तो वहीं से ही पढ़ाई भी की है
रशिका अनुराग से कहती है ये तुम्हारा घर है
अनुराग कहता है कितना बोलती हो तुम लाओ पंखा बताओ कहाँ लगाना है कितनी गर्मी है यहाँ और तुम बस स्टूल पकड़ लो मैं पंखा लगा देता हूँ
रशिका अनुराग से बाते करती रहती और अनुराग पंखा लगा कर नीचे उतरता है और रशिका से कहता है जाओ पंखा चलाओ अनुराग वहीं स्टूल पर बैठ जाता है
तो रशिका अनुराग को कहती है कि अरे इस पर क्युं बैठ गए बैड पर बैठो आराम से मैं आंटी को बुला कर लाती हूँ नमकीन बन गई है बस चाय बनाना है
फिर अनुराग रशिका को बताता है वो चाय और नमकीन मुझे दो मम्मी अभी पड़ोस में एक पूजा में गयी हैं हो सकता है कि देर हो जाये
फिर रशिका अनुराग के लिए चाय बनाकर के लाती है
और दोनो लोग चाय पीते हुए खूब बातें करतें हैं
रशिका कहती है चलो इस अंजान शहर में कोई तो जान पहचान का मिला ।
अनुराग चाय पीकर जाने लगता है तो रशिका को कहता है कि किसी भी हेल्प की जरूरत हो तो कह सकती हो मेरी मम्मी से या फिर मुझसे बिना किसी संकोच के
रशिका कहती है जरूर क्यूँ नहीं ।
रशिका अपने ऑफ़िस से...
दोनों साथ में ही पढ़ते थे
अनुराग बनारस में रहता था उसके पापा की जॉब पहले प्रयागराज में लगी थी इसलिए अनुराग ने अपनी पढ़ाई
उसी शहर में रहकर पूरी की इंटर की पढ़ाई पूरी होने के बाद अनुराग अपने परिवार के साथ अपने निजी घर बनारस में रहने लगा था
उधर रशिका भी अपनी जॉब के लिए प्रयागराज से बनारस आयी और बनारस में रशिका एकदम अकेली थी बिल्कुल नया शहर था बनारस रशिका के लिए
रशिका बनारस में ही किराये पर रहने के लिए अपने लिए कमरा देखने लगी
और उसे कमरा मिल भी गया और रशिका अपने कमरे को साफ करने लगी
रशिका को अपने कमरे में पंखा लगवाना था तो इसलिए उसने अपनी मकान मालिक से कहा कि आंटी मुझे छत वाला पंखा लगवाना है यहाँ कोई बिजली का कारीगर मिल जायेगा
आंटी ने कहा क्यूँ बेटा पैसा मिस्त्री को पैसा दोगी
अभी मेरा बेटा आ जायेगा मैं उसको कह दूँगी वो लगा देगा पंखा
बस हमें आज तुम अपने हाथ की चाय बनाकर पिला देना इस पर रशिका ने हँसते हुए कहा आंटी सिर्फ़ चाय से थोड़ी न बात बनेगी मैं नमकीन भी बनाऊँगी ।
रशिका अपने कमरे को सजा रही थी क्यूँकी उसे घर की साज सजावट करने का बहुत शौक था और उसका कहीं कोई अपना घर भी नहीं था
इसलिए रशिका बहुत मन से एकदम अपना घर मानकर कमरे को सजा रही थी।
रशिका स्टूल पर चढ़ कर कुछ तस्वीर दीवार पर लगा रही थी तभी मकान मालिक का लड़का दरवाजा खटखटाता है रशिका को लगता है कि आंटी आयीं हैं तो वो अंदर से ही कहती है आंटी दरवाजा खुला है अन्दर आप आ जाईये
रशिका नीचे उतर कर अनुराग को देखती है और कहती है तुम यहाँ तुम तो प्रयागराज में रहते थे न
तब अनुराग कहता है वहाँ पर मैं रहता था पर मेरा निजी घर यही है पापा आर्मी में थे न तो इसलिए वहाँ पर घर मिला था तो वहीं से ही पढ़ाई भी की है
रशिका अनुराग से कहती है ये तुम्हारा घर है
अनुराग कहता है कितना बोलती हो तुम लाओ पंखा बताओ कहाँ लगाना है कितनी गर्मी है यहाँ और तुम बस स्टूल पकड़ लो मैं पंखा लगा देता हूँ
रशिका अनुराग से बाते करती रहती और अनुराग पंखा लगा कर नीचे उतरता है और रशिका से कहता है जाओ पंखा चलाओ अनुराग वहीं स्टूल पर बैठ जाता है
तो रशिका अनुराग को कहती है कि अरे इस पर क्युं बैठ गए बैड पर बैठो आराम से मैं आंटी को बुला कर लाती हूँ नमकीन बन गई है बस चाय बनाना है
फिर अनुराग रशिका को बताता है वो चाय और नमकीन मुझे दो मम्मी अभी पड़ोस में एक पूजा में गयी हैं हो सकता है कि देर हो जाये
फिर रशिका अनुराग के लिए चाय बनाकर के लाती है
और दोनो लोग चाय पीते हुए खूब बातें करतें हैं
रशिका कहती है चलो इस अंजान शहर में कोई तो जान पहचान का मिला ।
अनुराग चाय पीकर जाने लगता है तो रशिका को कहता है कि किसी भी हेल्प की जरूरत हो तो कह सकती हो मेरी मम्मी से या फिर मुझसे बिना किसी संकोच के
रशिका कहती है जरूर क्यूँ नहीं ।
रशिका अपने ऑफ़िस से...