...

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"मैं ओस हूँ"
मैं ओस हूँ।
सर्दियों की हर सुबह मखमली घासो पर फैली होती हूँ।
गुलाब की पंखुडियों पर देर तक ठहरती हूँ।🌹🌹
रात के सन्नाटों में पत्तों से फीसलती हुए मधुर संगीत गुनगुनाती हूँ।
पेडो़ की टहनीयों से होते हुए, गेहूँ के मेडो़ पर टहलती हूँ।
मैं खेलती हूँ इस धरा से कोहरे का रूप लेकर।
और बरसती हूँ कभी - कभी फुहारों जैसा।
जब धूप की पहली किरण मुझ पर पड़ता है,
तो चमकती हूँ सीप में बन्द मोतीयों की तरह।।।
मैं गर्मियों में दबे पाँव जाती हूँ।
और सर्दीयों में दस्तक देती हूँ।
ठण्ड़ हवाओं संग बहते - बहते धरा का हर कोना माप आती हूँ।
रंग- बिरंगे फूलो के पंखुडी़या मुझे वही ठहर जाने की सिफारीश करती हैं।
मैं बूँद- बूँद करके बरसती हूँ।
पेडो़ के टहनियों और पत्तीयों पर झूमती हूँ।
मेरी छोटी बूँदें पौधो को जड़ो को सींचती है।।
मैं ओस हूँ
मैं आती हूँ आहिस्ता से हर बरस सर्दियों के संग हठखेलीयाँ खेलने।।