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जुनूनीयत - intro part
इस संसार में प्रेम के अनेको परिभाषाएं हैं। प्रेम को व्यक्त करने के बहुत से तरीके हैं। प्रेम जितना गहरा होता जाता है, उसे समझ पाना उतना ही दुर्लभ होती जाती है। एक ऐसी ही प्रेम कहानी से मैं आपको रू-ब-रू कराने जा रहा हूँ। जहाँ प्रेम की एक ऐसी पहलु भी देखने को मिलती है, जिससे ये अंदाज़ा लगाना अत्यंत कठिन हो जाता है के सही कौन है और गलत कौन।


कभी कभी हम अपने जीवन से इतनी ऊँची आशाएं रख लेते है के हमे हमारी आस पास पड़ी अवसर भी दिखाई नहीं पड़ती। मसलन, हर लड़के का इक ख्वाब होता है के बादलों की दुनिया से इक अप्सरा उतरेगी और उसकी वीरान पड़ी जीवन को शादाब कर देगी। हम कभी ये सोच ही नहीं पाते के हमारे पडोस की गली में भी कोई लड़की हो सकती है जो किसी अप्सरा से तनिक भी कम नहीं होगी।

मैं (विष्णु) उन दिनों अपनी इंजीनियरिंग की पढ़ाई खत्म कर घर बैठा ही था। अपने खाली वक़्त को भरने को मैं अक्सर अपने घर के दरीचे के पास बैठा करता था।

इक रोज़ की बात है, सुबह का वक़्त था सर्दियों का मौसम जो न सिर्फ हम इंसानो को आलस से भर देता है बल्कि सूरज भी इस मौसम का शिकार हो कर आम रोज़ से थोड़ी देर में उगता है। मैं रोज़ की तरह अपने घर के दरीचे के पास बैठा हुआ था और तभी एक मीठी सी ध्वनि मेरी कानो में पड़ती है। "माँ... टंकी भर गयी है मोटर बंद कर दो...." ये ध्वनि मेरे अंतर मन को व्याकुल कर रही थी। मैं बस किसी तरह उस आवाज़ की आती स्रोत को देखना चाहता था, मैं अपने व्याकुल मन के साथ अपने छत की ओढ़ भागता हूँ और वहां से मैं उस लड़की को देखता हूँ जिसकी ये कोमल स्वर थे।

सुमन मेरे पडोस की इक लड़की, लड़कपन से बस दो उम्र बड़ी, तीखे नैन नक्श, मटमैला रंग, रस से भरे पंखुड़ी जैसे होठ। मानो ईश्वर ने अपनी सारी कारीगरी उसे तराशने में लगा दी हो। जो न जाने कब से मेरे पडोस में रहती थी मगर आज तक मेरी इन नज़रों से ओझल रही ।

अजय मेरा मित्र, चंचल और भावनात्मक प्रकृति वाला। मुझपर जान लुटाया करता था। हम दोनो इक्कठे जवान हुए। बालपन की सुनहरे दिनों का हम ने एक साथ ही आनंद उठाया।

सुमन उस वक़्त बीएससी कर रही थी, संयोगवश मेरा मित्र अजय भी उसकी ही दर्जा में पढ़ा करता था।

यक़ीनन जब आप किसी लड़की को पसंद करते है तो निसंकोच बस एक अपने मित्र को ही बता पाते हैं। मैंने भी ठीक वही किया।

मैंने अजय से कहा; यार अजय, तुम्हारे साथ एक लड़की पढ़ती है। यक़ीनन तुम उसे जानते होंगे। वो जो अपने पडोस में रहती है।

अजय (उत्साह भरी स्वर में); हाँ हाँ तुम जान पहचान की बात करते हो, हम तो अच्छे मित्र है। कई बार मैं उसके घर भी जा चूका हूँ।

मेरे मन को इस बात पर शंका थी और होनी ही थी मैंने कभी अजय के मुख से उसका ज़िक्र नहीं सुना था।

मैंने अजय से पूछा (शंका भरी स्वर में); जब ऐसी बात है तो तुमने आज तक उसका ज़िक्र क्यों नहीं किया।

अजय (झिझक भरे स्वर में); तुमने ही कभी पूछा नहीं होगा। भला तुम उसके विषय में क्यों पूछ रहे हो कोई विशेष कार्य आन पड़ी।

मैं (अजय से); बस पूछो मत, कल सुबह ही मैंने उसे पहली बार देखा था और मानो मेरे अंतर मन में घर कर के बैठी हो। मन में बड़ी जिज्ञासा होती है उसे जानने की।

अजय (मस्ती भरे अंदाज़ में) ; तुम्हारी बातों से तो ये मालुम पड़ता है जैसे पहली मुलाक़ात में ही तुम उसे अपना दिल दे बैठे हो। मेरी बात मानो और सुमन को अपनी दिल का हाल बता दो। यदि तुम्हे बताने में शंका होती है तो मुझे बताओ मैं उस तक ये बात पहुंचा सकता हूँ।

मैं अजय से; नहीं इतनी जल्दी नहीं! मैं सोचता हूँ के पहले उसे जान लूँ , समझ लूँ। फिर देखेंगे !

Next part will come soon....

© Roshan Rajveer