...

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मेरा अफसाना
कुछ दिन हुए पुस्तक मेला देखने गया था
पुस्तकों के बीच खड़ा सोच रहा था
यहीं तो मुलाकात हुई थी
इतने में वो सामने से आती दिखाई दी
जैसे घटाओं में से चांद निकल आया हो
मिलते ही पूंछा क्या हाल चाल है
मेरी छोड़ो अपनी सुनाओ
तुम कैसी हो
सुना है आजकल बहुत
तरक्कियां कर रही हो
एम बी बी एस डाक्टर बन गई हो
बहुत व्यस्त रहती हो
पढ़ाई के सिलसिले में विदेश
आती जाती रहती है
डाक्टर हो कर भी हिन्दी साहित्य से
प्रेम गया नहीं
लेखन कार्य भी खूब कर रही हो
ओफ,ओ
मेरे विषय में इतनी जानकारी
मेरे पीछे जासूस लगा रखे हैं
या खुद ही जासूसी करते रहते हो
कलेजा दरक गया मन-ही-मन कहा
जासूसी नहीं करता हूं
तुम से प्यार करता हूं
पूजा की हद तक
तुम्हें अच्छी तरह याद होगा
तुम मुझ से एक गीत सुना करतीं थीं अक्सर
" छुपा लो यूं दिल में प्यार मेरा के
जैसे मन्दिर में लो दिये की
तुम जान के भी अनजान बनी
कि ये मेरे दिल के भाव थे
मैं कहीं भी जाऊं और
तुम्हारा जिक्र न हो
ये तो नामुमकिन है
किसी न किसी तरह पता कर ही लेता हुं
कि तुम कैसी हो
तुम पूछती हो कैसे हो
क्या बताऊं कैसा हूं
तुमने तो दोस्ती की मगर
मेरे अफसाने का नाम तो मुहब्बत है
कभी मिल लिया करो
मेरी मुहब्बत के लिए न सही
अपनी दोस्ती के लिए ही
© सरिता अग्रवाल