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मंथन
मित्रों शुभप्रभात।मित्रों कितना टूटना होता है न, कुछ शब्द जोड़ने के लिये।
स्त्रीयों का कविता करना नेसर्गीक है, कविता का हि प्रतिरूप हैं स्त्रीयाँ, रोम रोम मैं कविता हैं उनके। पर देख रहा हूँ, नये नये युवा शायरी कर रहें हैं, उनकी बातें दिल तक लगती हैं मेरी, और क़ितने रजनीश बनाएगा ये समाज,कवि हो जाना और कवि बन...