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वह तेरी नजर थी यह मेरी नजर है मालूम नहीं किसी को हकीकत सब बेखबर है

अक्सर हम दुनिया को जैसा देखते हैं वैसी होती नहीं है मैं चारों तरफ नजर घुमा कर देख रही हूं आस-पास कोई नहीं था। एक गोदाम जैसी कोई चीज जिसके अंदर मैं थी ,जमीन पर पड़ी हुई, आशाह, बेबस,थखी हुई, तभी कहीं दूर से अबाज रही थी, डॉक्टर साहिबा को होश आ गया अरे जाओ कोई देखकर तो आओ, मैं उनकी आवाज सुनकर डर गई मैंने देखा बे चारो मेरी तरफ आ रहे थे मैं समझ नहीं पा रही थी मैं कहां हूं मुझे डर लग रहा था डर के मेरी मेरी आवाज नहीं निकल रही थी मैं उठने की कोशिश कर रही थी पर शायद मुझे बांद रखा था मेरे पैर में जंजीर बधी हुई थी, मैं भागने की कोशिश की लेकिन मैं मजबूर थी, वे पास आ चुके थे उनमें से एक बोला ,, इसको तैयार करो ,, उसने मेरी जंजीर खोली उठाकर ले जाने लगा ,,, पीठ पर लाद कर , मुझ में चलने की हिम्मत नहीं थी, एक कमरे में ले जाकर, उसने मुझे एक टेबल पर बिठा दिया , कमरे में एक छोटा सा लैंप रखा था जिसकी रोशनी हो रही थी तभी वहां पर तीन-चार लड़कियां आती हैं जिन्होंने अपने हाथ में कुछ कपड़े गहने और मेकअप की चीज पकड़ी हुई थी, उन में से एक बोली ,वाहो!!!" कितनी सुंदर है"!! चलो इसको तैयार करो बारात का समय होने वाला है पंडित दुल्हन को बुला रहा है और दुल्हन अभी तक ऐसे ही पड़ी हुई है,, मैं समझ नहीं पा रही थी, मेरे पास आए उन सबने मिलकर !! मेरा मेकअप शुरू कर दिया तब तब मैंने पहली बार आईने में !! अपने आप को देखा!! मैं तो एक दुल्हन की तरह लग रही हूं !! अब मेरी समझ में आ चुका था ! जिस बारात के लिए ,लोग बात कर रहे थे वह मेरी ही थी ,मैं ही दुल्हन थी!! तभी एक बूढी औरत ने आकर मेरी नजर उतारी !!और कहा !! मेरी बेटी को नजर ना लगे !! मै समझ नहीं पा रही थी वह कौन थी ,यह सब क्या हो रहा है, कुछ देर बाद मुझे मंडप में ले जाया गया । मैं कुछ नहीं कर पा रही थी उनका कहना मान रही थी , उसे लड़के के साथ मेरी शादी हो गई और वह मुझे एक गाड़ी में लेकर अपने घर ले आया!! बहुत सुंदर सा घर !! मैं अभी भी खामोशी थी, समझ नहीं आ रहा था क्या करूं !! तभी वह मेरे कमरे में आया लाइट बंद कर मेरे साथ सो गया !! मैं खामोश पड़ी थी !! सुबह किसी ने आकर मुझे आवाज दी, अभी तक सोती रहोगी, उठो बेबी, मैंने देखा!! वही लड़का था जो मुझसे शादी करता है !! मैं कुछ बोल नहीं पा रही थी !! उठकर खड़ी हो गई ,,लड़के ने कहा " तैयार हो जाओ" मैं किसी कठपुतली की तरह उसकी बात मान रही थी, "आज पूजा के लिए जाना है"" मैं तैयार होकर उसके साथ चलदी वह मुझे पहाड़ी पर बने बड़े मंदिर के पास ले गया ,लेकिन अभी भी ,"मैं अपने आप को समझ नहीं पा रही थी " यह सब क्या हो रहा है ,कहीं, मैं सपना तो नहीं देख रही हूं ,लेकिन यह ,,,सपना नहीं था !! 'मैंने अपने आप को शीशे में देखा जो गाड़ी का बैक-मिरर था" मैं बहुत सजी शबरी दुल्हन की तरह थी, मेरे साथ में , मेरे पति के अलावा मेरे सास ससुर भी थे ,ऐसा मेरे को महसूस हो रहा था !! लेकिन मेरा मन बहुत वियाकुल था , यह सब ? मैं क्या देख रही हूं ?कहीं मेरी नजर का कोई ब्रह्म तो नहीं है, वह औरत कौन थी ? "जो मुझे बेटी कह रही थी" और बे चारों कौन थे ? "तभी मेरे ससुर जी बोले ' विवेक तुम्हारे साले तो बहुत बढ़िया थे !! चारों ने मिलकर बहुत अच्छा इंतजाम किया था बेचारी नेहा की मां बहुत अफसोस कर रही थी ,सोच रही होगी !! नेहा को उससे दूर कर दिया हम लोगों ने, तभी मेरा पति बोला , शायद जिसका नाम विवेक था, वह बोला!! " नहीं" !!!,,'ऐसी कोई बात नहीं पिताजी, #@$%!!"अब मुझे लग रहा था ,मेरा नाम नेहा है" और बह चारों लड़के मेरे भाई थे, लेकिन मुझे याद क्यों नहीं है ? "यह सब" मेरे समझ में कियूँ नहीं आ रहा, यह सब क्या हो रहा है आखिर कौन है यह लोग कहां पर हूं , मैं सपना तो नहीं देख रही हूं हकीकत क्या है ??? 'कैसे मालूम करूं'??,,, नेहा क्या सोच रही हो तुम ,,चलो उत्तर भी जाओ,, नेहा ने एकदम से देखा विवेक की तरफ, मंदिर आ चुका था पुजारी बैठा हुआ था और बहुत सारे मेहमान लोग थे बहुत ही सुंदर स्थान था ,पहाड़ों के बीच सुंदर सा मंदिर था उसी मंदिर में पूजा स्थल बना हुआ था। उसी में आज इन सब का कोई पूजन का प्रोग्राम था नेहा सोंच रही थी, यह सब क्या हो रहा है, आखिर मैं किसी को पहचान क्यों नहीं पा रही हूँ वह चारों मेरे भाई हैं ,तो कहां पर रहते हैं ,मुझे क्यों नहीं मालूम हो रहा है ,मेरी मां कौन है मेरे पिता कौन है ,क्या है मेरे जीवन की कहानी?? इन सारे जवाब के लिए जल्दी दूसरे भाग में मिलेंगे जिसका नाम है -:मैं कौन हूं:-
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