बेटी का घर..
" बेटी घर की वो रौनक है
जो अपनी रौशनी से घर के
हर इक कोने को रौशन करती है "
हर मां कि ये ख्वाहिश होती है के उसकी बेटी अपने घर को (ससुराल) वैसे ही शाद - बाद रखे जैसे उसके होने से हमारे घर में किलकारियां हुआ करती थीं । इसी उम्मीद के साथ भारी मन से मां बाप बेटियों को रुखसत किया करते हैं।
कुछ उम्मीदें मां बाप की और कुछ खुद के ही मन की उम्मीद लिए बेटी अपने बचपन के आँगन को छोड़ देती है।
आने वाला वक्त बहुत सारी जिम्मेदारियां लेकर आने वाला होगा ये उसे अपने आँगन की दहलीज़ छोड़ने के साथ ही पता होता है।
क़िस्मत ही जाने उसे मिलने वाले लोग कैसे होंगे लेकिन अब जैसा भी हो वो सब कुछ निभाने के लिए तैयार की गई है।
...
जो अपनी रौशनी से घर के
हर इक कोने को रौशन करती है "
हर मां कि ये ख्वाहिश होती है के उसकी बेटी अपने घर को (ससुराल) वैसे ही शाद - बाद रखे जैसे उसके होने से हमारे घर में किलकारियां हुआ करती थीं । इसी उम्मीद के साथ भारी मन से मां बाप बेटियों को रुखसत किया करते हैं।
कुछ उम्मीदें मां बाप की और कुछ खुद के ही मन की उम्मीद लिए बेटी अपने बचपन के आँगन को छोड़ देती है।
आने वाला वक्त बहुत सारी जिम्मेदारियां लेकर आने वाला होगा ये उसे अपने आँगन की दहलीज़ छोड़ने के साथ ही पता होता है।
क़िस्मत ही जाने उसे मिलने वाले लोग कैसे होंगे लेकिन अब जैसा भी हो वो सब कुछ निभाने के लिए तैयार की गई है।
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