...

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बेटी का घर..
" बेटी घर की वो रौनक है
जो अपनी रौशनी से घर के
हर इक कोने को रौशन करती है "

हर मां कि ये ख्वाहिश होती है के उसकी बेटी अपने घर को (ससुराल) वैसे ही शाद - बाद रखे जैसे उसके होने से हमारे घर में किलकारियां हुआ करती थीं । इसी उम्मीद के साथ भारी मन से मां बाप बेटियों को रुखसत किया करते हैं।
कुछ उम्मीदें मां बाप की और कुछ खुद के ही मन की उम्मीद लिए बेटी अपने बचपन के आँगन को छोड़ देती है।

आने वाला वक्त बहुत सारी जिम्मेदारियां लेकर आने वाला होगा ये उसे अपने आँगन की दहलीज़ छोड़ने के साथ ही पता होता है।

क़िस्मत ही जाने उसे मिलने वाले लोग कैसे होंगे लेकिन अब जैसा भी हो वो सब कुछ निभाने के लिए तैयार की गई है।

(कुछ समय बीतने के बाद मां - बेटी के फ़ोन पे बिताए कुछ पल )

मां: हेलो! बेटा कैसी हो?
बेटी: हाँ ठीक हूं, मां।
मां: और घर वाले, ससुराल वाले कैसे हैं, सब ठीक हैं ना?
बेटी: हां मां! सब ठीक हैं और यहां सब बहुत अच्छे हैं।

मां: और मेरा दामाद! तुम्हारा ख्याल तो करता है ना?
बेटी: अरे मां! तुम भी न, वो बहुत ख्याल करते हैं और मुझसे प्यार भी बहुत करते हैं।

मां: हां बेटा चलो ठीक है, तुम भी सबका ध्यान रखना, अपने सास ससुर का भी ख्याल रहे, अपने शौहर के साथ साथ। बेटी कोई कुछ कह दे तो चुप रहना बेटा। किसी पे गुस्सा नहीं करना। वहाँ सब तुझसे खुश रहे, इसी में एक लड़की की भी खुशी होती है बेटा।
बेटियों की ज़िंदगी उनके ससुराल के लिए ही होती है। शादी के बाद बेटियाँ मायके में अच्छी नहीं लगती। लोग चार बातें बनानी शुरू कर देते हैं। समझ रही हो न बेटा!

बेटी: जी मां! सब समझ रही हूं । अब फ़ोन रखती हूं (भरी हुई आवाज़ से) घर के बहुत सारे काम पड़े हैं अभी।

इधर फ़ोन का रखना था और मन जो सारी बातों से भारी हुआ था और एक लम्हें के लिए कुछ यादें पुरानी दिल में हलचल कर गई थी…
वो चुप चाप से अपने कमरे में दुबक कर रोने लगती है। फिर कुछ पल में ही आसूं पोंछे और जाकर अपने सिंगार मेज़ पर लगे आईने के सामने बैठी, खुद से ही एक सवाल पूछती है।
" वाह! तू कितनी अच्छी कलाकार हो गई है, कितनी सफ़ाई से, बिना झिझके सारे झूठ बोल दिए। सब बहुत अच्छे हैं, सब ख्याल भी करते हैं और मुझसे प्यार भी बहुत करते हैं।"

और बस हो गया अपने अंतर्मन से सवाल जवाब, लग गई थी वो फिर से अपने रोज़मर्रा वाले कामों में और उस ज़िंदगी में जो बस एक सेट की हुई मशीन की तरह चलती जा रही थी।
कहां ख़ुद का सुकून और प्यार और ख्वाहिशें जो कभी मन में मचला करती थीं और बस वही की होकर रह गई।
वही खाना बनाना, बर्तन साफ करे के शौहर का टिफन पैक, बच्चों को तैयार करना तो चाय के वक्त का एहसास भी। और न जाने कितनी ही अनकही जिम्मेदारियां।

और ये सबकुछ करके बस बचा ली उसने अपने मायके की लाज और ससुराल की इज़्ज़त का भरम भी बाक़ी रहा।

तो हां! शायद कह सकते हैं ऐसी ही लड़कियां आज के इस दौर में अच्छी बहू और अच्छी बेटी कहलाती है।









© Mojiz Kalam