एक किस्सा दर्द का
#TheWritingProject
दर्द से वास्ता होना कोई नई बात नहीं है और सबकी ज़िंदगी में तमाम दर्द आते–जाते ही रहते है। पर यहां दर्द कुछ प्रेम का है गलतफैमयों की शिकार दो जिंदगी। लेकिन जिससे उम्मीद बहुत हो और वो आपको ना समझे तब दुःख ज्यादा होता है। फिर भी मैं सोचती हूं कि हमे उम्मीद ना भी किसी से लगाना हो तब भी कहीं न कहीं लग ही जाती है। उसके बाद वो हमे धीरे–धीरे खोखला बनाने लगती है। क्यों किसी अपने को समझना इतना तकलीफ़ भरा होता है ?, क्यों हर उस शख्स को अपने प्रेम को साबित करना होता है, खास कर उसे जिसने सामने वाले कि सांस को भी तिल–तिल जिया हो। ऐसा कोई रिश्ता नहीं है जहां प्रेम ज्यादा होता हो वहां गलतियां और गलतफैमियां भी ना होती हो। लेकिन इसमें उस पवित्र प्रेम का क्या दोष है वो तो बस दो लोगो में पनपता है।दो प्रेमी बस उसे अनन्त वक्त तक जीना चाहते है। और फिर कुछ लोगो से ये सुख देखा नहीं जाता और इन्हीं लोगो का प्रेम में प्रवेश होता है जो उनके रिश्ते को उनसे ज्यादा समझने और समझाने लगते है। फिर ना चाहते हुए भी खुशियों का सन्तुलन बिगड़ने लगता है।
इन सबके बाद पुरानी की गई गलतियों और बातों को एक एक करके दफनाए
हुए बक्शे से निकल कर भयंकर आकलन कराया जाता है जो उन दो प्रेमियों ने आपस में एक दूसरे से पहले ही पूछताछ के बाद रफादफा कर चुके होते है। ये तो हमारे तीसरे लोग होते है जो दो लोगो के रिश्ते में हावी होने की पूरी कोशिश करते है वो लोग सुझाव देते है जैसे वो बहुत ही अव्वल प्रकार के ज्ञानी हो खैर उसमे ज्ञान कम नमक मिर्च ज्यादा छिड़कते है। ये उस वक्त दोनो प्रेमियों को कुछ समझ नहीं आता है। वो सिर्फ़ एक वजह ढूंढते है जिससे उनका टूटता रिश्ता बच जाए । वो नही समझ पाते की ये बाहरी लोग कभी सगे नहीं हो सकते फिर भी उन्हीं की बातों में बेवजह ही उलझते ही चले जाते है। मासूम सा दिल होता है उनका जिससे कुछ चंद लोग नजर लगाके निकल जाते है। वो दोनो जितना ही एक दूसरे के प्रेम में संतुलित होते है वो उतना ही असंतुलित होने लगते है। उन तीसरे शख्स के बतलाए हुए झूठ को सच मान बैठते है, अपने इतने बरसों के प्रेम को भूलकर शक का कीड़ा भर लेते है। अब वो एक दूसरे से बात तो किया करते है पर इतना दिल खोलकर कर नहीं, वो उन दबे लफ्जों में कितना कुछ लिए बैठे है किसी को नहीं पता पर इतना जरूर है की दोनो के बीच एक दर्द की दीवार ज़रूर खड़ी है जो कहीं न कहीं अब भी इन्हे बखूबी जोड़ती है। वो अपनें मन को कितना ही क्यों न सुलझा ले पर उन बाहरी बातों का क्या जो उनके दिमाग में जहर की तरह घोल दी गई है । अब रिश्तों में दरारें आ ही जाती है , उसके बाद इस रिश्ते का सर्वनाश होने लगता है और प्रेमी और प्रेमिका दोनो का हृदय गम से भर जाता है। उन दोनों में भले ही प्रेम बहुत रहा हो पर वो दूरियों में रहना शुरू कर देते है और एक दूसरे की यादों के सहारे आंखे भिगोने लगते है प्रेम ऐसा ही होता है हुआ तो उसमें शख्स बस डूबता गया और दूर चला गया तो एक ज़िंदा लाश कि तरह हो जाता है, एक दम बेजान फिर भी एक उम्मीद तब भी होती है और जिसे कहते है इंतज़ार। लेकिन सबसे महंगी वस्तु में बेशुमार होता है इंतजार उन दोनो में से जिसने भी कर लिया या उस इंतज़ार को जी लिया तब उसका प्यार जीत जाता है और जो हार गया वो ताउम्र पछताता है। कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती है वो दोनो अलग ज़रूर रहते है पर प्रेम बहुत ज़्यादा होता है वो पास नहीं होते तब भी वो दूर से एक दूसरे को छिप कर देखते है पर उन्हें अलग हुए लगभग एक साल हो चुका है और दोनो अब भी अकेले ही है। मजे कि बात ये है कि अपने गम की सिफ़ारिश किसी से नहीं करते शायद इसी को टूटकर चाहने वाला प्रेम कहते है। उड़ान भी भरने की चाहत थी उनमें तो प्रेम का गम तो पी लिया पर पारिवारिक और खुद की इच्छाओं को मारना बेहतर नहीं समझा उन्होंने तो अपनी मंजिल तय करने का फ़ैसला किया और अपने काम में जुट गए। वो दोनो अपने प्रेम की खातिर एक मिशाल थे पर जब कभी उनके पुराने दोस्त उनको मिलते और दूसरे साथी के बारे में पूछते तो उनके पास चुप्पी साधने के आलावा कोई और साधन नही होता फिर भी एक झूठी मुस्कान देकर कहते की ठीक है पर अब हम साथ नहीं रहते गम और इन नम आंखों को छुपाने के लिए मुंह फेर लेते ताकि दिल का हाल ये आसूं बयां ना कर दे। ये सब होने से दर्द होना तो तय था पर इसमें कुछ किया भी नहीं जा सकत था।
जो उनके सच्चे दोस्त होते उन्हे इस बात से बुरा लगता और जो दिखावटी होते उन्हे बिखरे को सताने में और मजा आता ।पर वो इन सब से बच भी नहीं सकते थे तो बिना बोले ही चल देते थे। पूरा दिन अपनी बनाई हुई दिनचर्या का पालन करने के बाद जब दोनो खाली बैठते तो फिर दोनो अपने बिताए हुए पलों को याद करते और आंखों में पानी और होठों से हल्की हसीं और दर्द भरे गाने लगाकर अपने ही दर्द को और गहरा करते थे प्रेम में तड़प बहुत होती है एक दूसरे को देखने और बात करनी कि पर अभी दोनो ही सही वक्त की ताक में थे।
उनको क़रीब डेढ़ साल होने ही वाला था की अब भी दोनो में उतनी ही चाहते बरकरार थी। दोनो एक दूसरे कि तस्वीरों को तब तक निहारते जब तक मन न भर जाए या उनमें से कोई याद करते करते सो ना जाए। दूरियां बहुत है पर दोनो को एक दूसरे की ख़बर पूरी रहती है... आखिर यही तो प्रेम है साथ हो या न हो पर चाहत भरपूर हो। हां आप सही पढ़ रहे है शिवि और वरुण की कहानी जो इस कहानी के मुख्य पात्र हैl शिवि इक्कीस की है और वरुण अब बाइस का और कहानी शुरू होती है कक्षा बारहवीं से परीक्षा का वक्त होता है शिवि आगे और वरुण ठीक पीछे की सीट पर होता है। वैसे पढ़ने में वो दोनो ही अच्छे होते है पर उस दिन वरुण किसी एक प्रश्न पर अटक गया और उसने शिवि से हिचकिचाते हुए कहा क्या तुमने ये प्रश्न हल कर लिया ? शिवि खुशमिजाजी लड़की थी स्वभाव में सरल और खुले विचारों वाली थी । उसने हल्की सी मुस्कान देकर सिर हिलाते हुए कहा कि हां कर लिया क्या तुम्हे मेरी मदद चाहिए , वरुण थोड़ा शरारती स्वभाव का होता है पर पढ़ने के मामले में वो थोड़ा ईमानदार होता है तो उसे पूछना अच्छा नही लगता फिर भी वो मन मसोसकर उससे इतना कहता है की हां मदद चाहिए पर तुम मुझे सिर्फ दो पंक्तियां बता दो बाकी में पूरा कर लूंगा। वो कहती है चलो ठीक है और वो उसे बता देती है अब दोनो अपनी परीक्षा पूरी करते है और स्कूल से बाहर जाने के दौरान वरुण शिवि को धन्यवाद बोलता है तो शिवि कहती कोई बात नहीं कभी मुझे जरूरत पड़ेगी...
दर्द से वास्ता होना कोई नई बात नहीं है और सबकी ज़िंदगी में तमाम दर्द आते–जाते ही रहते है। पर यहां दर्द कुछ प्रेम का है गलतफैमयों की शिकार दो जिंदगी। लेकिन जिससे उम्मीद बहुत हो और वो आपको ना समझे तब दुःख ज्यादा होता है। फिर भी मैं सोचती हूं कि हमे उम्मीद ना भी किसी से लगाना हो तब भी कहीं न कहीं लग ही जाती है। उसके बाद वो हमे धीरे–धीरे खोखला बनाने लगती है। क्यों किसी अपने को समझना इतना तकलीफ़ भरा होता है ?, क्यों हर उस शख्स को अपने प्रेम को साबित करना होता है, खास कर उसे जिसने सामने वाले कि सांस को भी तिल–तिल जिया हो। ऐसा कोई रिश्ता नहीं है जहां प्रेम ज्यादा होता हो वहां गलतियां और गलतफैमियां भी ना होती हो। लेकिन इसमें उस पवित्र प्रेम का क्या दोष है वो तो बस दो लोगो में पनपता है।दो प्रेमी बस उसे अनन्त वक्त तक जीना चाहते है। और फिर कुछ लोगो से ये सुख देखा नहीं जाता और इन्हीं लोगो का प्रेम में प्रवेश होता है जो उनके रिश्ते को उनसे ज्यादा समझने और समझाने लगते है। फिर ना चाहते हुए भी खुशियों का सन्तुलन बिगड़ने लगता है।
इन सबके बाद पुरानी की गई गलतियों और बातों को एक एक करके दफनाए
हुए बक्शे से निकल कर भयंकर आकलन कराया जाता है जो उन दो प्रेमियों ने आपस में एक दूसरे से पहले ही पूछताछ के बाद रफादफा कर चुके होते है। ये तो हमारे तीसरे लोग होते है जो दो लोगो के रिश्ते में हावी होने की पूरी कोशिश करते है वो लोग सुझाव देते है जैसे वो बहुत ही अव्वल प्रकार के ज्ञानी हो खैर उसमे ज्ञान कम नमक मिर्च ज्यादा छिड़कते है। ये उस वक्त दोनो प्रेमियों को कुछ समझ नहीं आता है। वो सिर्फ़ एक वजह ढूंढते है जिससे उनका टूटता रिश्ता बच जाए । वो नही समझ पाते की ये बाहरी लोग कभी सगे नहीं हो सकते फिर भी उन्हीं की बातों में बेवजह ही उलझते ही चले जाते है। मासूम सा दिल होता है उनका जिससे कुछ चंद लोग नजर लगाके निकल जाते है। वो दोनो जितना ही एक दूसरे के प्रेम में संतुलित होते है वो उतना ही असंतुलित होने लगते है। उन तीसरे शख्स के बतलाए हुए झूठ को सच मान बैठते है, अपने इतने बरसों के प्रेम को भूलकर शक का कीड़ा भर लेते है। अब वो एक दूसरे से बात तो किया करते है पर इतना दिल खोलकर कर नहीं, वो उन दबे लफ्जों में कितना कुछ लिए बैठे है किसी को नहीं पता पर इतना जरूर है की दोनो के बीच एक दर्द की दीवार ज़रूर खड़ी है जो कहीं न कहीं अब भी इन्हे बखूबी जोड़ती है। वो अपनें मन को कितना ही क्यों न सुलझा ले पर उन बाहरी बातों का क्या जो उनके दिमाग में जहर की तरह घोल दी गई है । अब रिश्तों में दरारें आ ही जाती है , उसके बाद इस रिश्ते का सर्वनाश होने लगता है और प्रेमी और प्रेमिका दोनो का हृदय गम से भर जाता है। उन दोनों में भले ही प्रेम बहुत रहा हो पर वो दूरियों में रहना शुरू कर देते है और एक दूसरे की यादों के सहारे आंखे भिगोने लगते है प्रेम ऐसा ही होता है हुआ तो उसमें शख्स बस डूबता गया और दूर चला गया तो एक ज़िंदा लाश कि तरह हो जाता है, एक दम बेजान फिर भी एक उम्मीद तब भी होती है और जिसे कहते है इंतज़ार। लेकिन सबसे महंगी वस्तु में बेशुमार होता है इंतजार उन दोनो में से जिसने भी कर लिया या उस इंतज़ार को जी लिया तब उसका प्यार जीत जाता है और जो हार गया वो ताउम्र पछताता है। कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती है वो दोनो अलग ज़रूर रहते है पर प्रेम बहुत ज़्यादा होता है वो पास नहीं होते तब भी वो दूर से एक दूसरे को छिप कर देखते है पर उन्हें अलग हुए लगभग एक साल हो चुका है और दोनो अब भी अकेले ही है। मजे कि बात ये है कि अपने गम की सिफ़ारिश किसी से नहीं करते शायद इसी को टूटकर चाहने वाला प्रेम कहते है। उड़ान भी भरने की चाहत थी उनमें तो प्रेम का गम तो पी लिया पर पारिवारिक और खुद की इच्छाओं को मारना बेहतर नहीं समझा उन्होंने तो अपनी मंजिल तय करने का फ़ैसला किया और अपने काम में जुट गए। वो दोनो अपने प्रेम की खातिर एक मिशाल थे पर जब कभी उनके पुराने दोस्त उनको मिलते और दूसरे साथी के बारे में पूछते तो उनके पास चुप्पी साधने के आलावा कोई और साधन नही होता फिर भी एक झूठी मुस्कान देकर कहते की ठीक है पर अब हम साथ नहीं रहते गम और इन नम आंखों को छुपाने के लिए मुंह फेर लेते ताकि दिल का हाल ये आसूं बयां ना कर दे। ये सब होने से दर्द होना तो तय था पर इसमें कुछ किया भी नहीं जा सकत था।
जो उनके सच्चे दोस्त होते उन्हे इस बात से बुरा लगता और जो दिखावटी होते उन्हे बिखरे को सताने में और मजा आता ।पर वो इन सब से बच भी नहीं सकते थे तो बिना बोले ही चल देते थे। पूरा दिन अपनी बनाई हुई दिनचर्या का पालन करने के बाद जब दोनो खाली बैठते तो फिर दोनो अपने बिताए हुए पलों को याद करते और आंखों में पानी और होठों से हल्की हसीं और दर्द भरे गाने लगाकर अपने ही दर्द को और गहरा करते थे प्रेम में तड़प बहुत होती है एक दूसरे को देखने और बात करनी कि पर अभी दोनो ही सही वक्त की ताक में थे।
उनको क़रीब डेढ़ साल होने ही वाला था की अब भी दोनो में उतनी ही चाहते बरकरार थी। दोनो एक दूसरे कि तस्वीरों को तब तक निहारते जब तक मन न भर जाए या उनमें से कोई याद करते करते सो ना जाए। दूरियां बहुत है पर दोनो को एक दूसरे की ख़बर पूरी रहती है... आखिर यही तो प्रेम है साथ हो या न हो पर चाहत भरपूर हो। हां आप सही पढ़ रहे है शिवि और वरुण की कहानी जो इस कहानी के मुख्य पात्र हैl शिवि इक्कीस की है और वरुण अब बाइस का और कहानी शुरू होती है कक्षा बारहवीं से परीक्षा का वक्त होता है शिवि आगे और वरुण ठीक पीछे की सीट पर होता है। वैसे पढ़ने में वो दोनो ही अच्छे होते है पर उस दिन वरुण किसी एक प्रश्न पर अटक गया और उसने शिवि से हिचकिचाते हुए कहा क्या तुमने ये प्रश्न हल कर लिया ? शिवि खुशमिजाजी लड़की थी स्वभाव में सरल और खुले विचारों वाली थी । उसने हल्की सी मुस्कान देकर सिर हिलाते हुए कहा कि हां कर लिया क्या तुम्हे मेरी मदद चाहिए , वरुण थोड़ा शरारती स्वभाव का होता है पर पढ़ने के मामले में वो थोड़ा ईमानदार होता है तो उसे पूछना अच्छा नही लगता फिर भी वो मन मसोसकर उससे इतना कहता है की हां मदद चाहिए पर तुम मुझे सिर्फ दो पंक्तियां बता दो बाकी में पूरा कर लूंगा। वो कहती है चलो ठीक है और वो उसे बता देती है अब दोनो अपनी परीक्षा पूरी करते है और स्कूल से बाहर जाने के दौरान वरुण शिवि को धन्यवाद बोलता है तो शिवि कहती कोई बात नहीं कभी मुझे जरूरत पड़ेगी...