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उपकार का बदला
प्राचीन काल की बात है एक बार एक सिंह के पैर में मोटा सा कांटा चुभ गया था सिंह ने दांत से बहुत नोचि किंतु कांटा नहीं निकल सका वह लंगड़ा था हुआ एक गडरिया के पास पहुंचा अपने पास सिंह को आते देख गडरिया बहुत डरा लेकिन वह जानता था कि भागने से दो ही छलांग में उसे पकड़ लेगा पास में कोई पेड़ भी नहीं था कि गड़रिया उस पर चल जाए दूसरा कोई उपाय ना देखकर गडरिया वही चुपचाप बैठ गया।
सिंह ना गरजा न गुर्राया वह गडरिया के सामने आकर बैठ गया और अपना पैर उसके आगे कर दिया। गडरिया ने समझ लिया है कि सिंह को उसकी सहायता चाहिए उसने सिंह के पैर से कांटा निकाल दिया सिंह जैसे आया था उसी और जंगल में फिर चला गया।
कुछ दिनों के बाद राजा के यहां एक चोरी हुई कुछ लोगों ने झूठ मुठ में यह बात राजा से कह दी कि गड़रिया चोर है उसी ने राजा के यहां चोरी की है गडरिया को पकड़ कर लाया गया उसके घर में चोरी की कोई वस्तु नहीं निकली किंतु राजा ने समझा कि उसने चोरी का सामान छिपा दिया है इसलिए उन्होंने गडरिया को जीवित सिंह के सामने छोड़ने की आज्ञा दे दी।
संयोगवश गडरिया को मारने के लिए वही सिंह पकड़ा गया जिसके पैर का कांटा गडरिया नहीं निकाला था जब गडरिया सिंह के सामने छोड़ा गया तो सिंह ने उसे पहचान लिया वह गडरिया के पास आकर बैठ गया और कुत्ते के समान पूंछ हिलाने लगा।
राजा को बड़ी हैरानी हुई कि सिंह ने ऐसा क्यों किया फिर पूछने पर पता चला कि गडरिया ने सिंह का कभी कांटा निकाला था जिससे सिंह ने कृतज्ञता से गड़रिया को मारने के बजाय छोड़ दिया?
सिंह जैसा भयानक पशु भी अपने परोपकार करने वाले की उपकार को नहीं भूला मनुष्य होकर जो किसी का उपकार भूल जाते हैं वह तो पशु से भी गए गुजरे होते हैं।
© abdul qadir