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माता की महिमा है अपार
अभी पिछले साल की ही बात है यही चैत्र नवरात्रि का त्यौहार चल रहा था ।घर में पूजा पाठ के बाद घूमने का प्रोग्राम बना बच्चों की छुट्टियां तो चल ही रही थी ।तो सोचा साथ में हम गृहणियां भी छुट्टियों का मजा उठाते हैं और कहीं घूम आते हैं। बच्चों का मन भी बहल जाएगा और हमारे लिए थोड़ा चेंज भी हो जाएगा ।घर से निकलते निकलते लगभग दोपहर हो चुकी थी ।अब इस भरी दोपहरी में कहां जाए हम कुछ समझ ही नहीं पा रहे थे।
हमारे पास ऑप्शन थोड़े कम थे एक तो हम किसी पार्क में जाकर पिकनिक बना सकते थे । दूसरा किसी मल्टीप्लेक्स में जाकर मूवी देख सकते थे और शॉपिंग कर सकते थे। बच्चों ने शॉपिंग और मूवी के लिए मना कर दिए। क्योंकि वो पहले ही घर में बैठ मूवी देख देख बोर हो चुके थे। तो फाइनल हुआ पार्क जाना। जैसे ही हमने पार्क में प्रवेश किया। रंग-बिरंगे फूलों पे मंडरा रही तितलियों ने अपनी तरफ़ बच्चों का ध्यान आकर्षित करने लगा। बच्चे हाथ छुड़ाकर तितलियों के पीछे भागने लगे
हम भी वही पेड़ की छांव में चादर डालकर बैठ गए।
वहां और भी बहुत सारे लोग थोड़ी-थोड़ी दूर पर अपने-अपने ग्रुप के साथ छुट्टियों का आनंद ले रहे थे।
कोई बैडमिंटन खेल रहे थे तो कोई बॉल के साथ यूं ही टाइम पास कर रहे थे। कोई अंताक्षरी खेल रहे थे। तो कोई यूं ही अपने परिवार के साथ हंसी मजाक और खाने-पीने का आनंद उठा रहे थे। हम लोग भी ताश के पत्ते निकालकर अभी बाजी शुरू करने ही वाले थे कि अचानक से एक पक्षी ने उड़ते हुए ही सुभद्रा के सर को टक से स्पर्श किया और चला रहा। अपने सर पर भार महसूस करने के कारण सुभद्रा जोर से चीखी उसे लगा शायद पेड़ से कोई फल उसके ऊपर गिर गया है। किंतु यहां मामला कुछ और ही था दूर बैठे सभी लोग सुभद्रा की तरफ घूर-घूर कर देखने लगे ।सुभद्रा सोच रही थी इतने सारे लोगों में एक मैं ही मिली क्या उसे, हम लोगों में से किसी ने उस पक्षी को नहीं पहचाना किंतु दूर बैठे चौकीदार ने कहा वह चील था। साथ ही यह भी बताया कि चील का स्पर्श अच्छा नहीं माना जाता है। उसकी बातें सुनकर सुभद्रा के साथ हम सब भी घबरा गए सुभद्रा तो बस स्वयं को कोसे जा रही थी ।मैं क्यों आ गई ।पर होनी तो हाथ पकड़ कर करवा देती है ।वह काम भी जो हम कभी करना ही नहीं चाहते। फिर जल्दी-जल्दी हम लोग बच्चों को लेकर घर आ गए ।समझ नहीं आ रहा था कि हम क्या करें और किससे अपनी यह बातें कहें जिससे हमारा मन भी हल्का हो जाए और हमें इस मुश्किल से निकलने के लिए कोई मार्ग भी मिले। इतने में ही सुभद्रा के पापा का कॉल आया पापा की आवाज सुनकर सुभद्रा थोड़ी रो पड़ी।पापा के बहुत पूछने पर उसने सारा वृत्तांत सुनाया पापा ने कहा सबसे पहले तो तुम रोना बंद करो और अपने मन से यह भ्रम निकाल दो कि पक्षियों का स्पर्श अच्छा नहीं होता है । सुभद्रा ने बीच में ही पापा की बात काटते हुए कहा पापा पक्षी नहीं वह चील था।
अपनी बेटी को इस तरह परेशान होते हुए देखकर पापा ने कहा सुभद्रा तुम शांत हो जाओ और मेरी बात सुनो चील भी एक पक्षी ही होता है। और क्या तुमने उसे देखा वह चील था या कुछ और...?? जिस पर सुभद्रा ने कहा नहीं पापा हम में से किसी ने भी नहीं देखा..!
जब सामने से तुम लोगों ने नहीं देखा तो दूर बैठें उस चौकीदार को भला कैसे दिख गया कि वह कौन सा पक्षी था..?? पापा वह तो वही रहता है। और हो सकता है पहले भी ऐसा किसी और के साथ भी हुआ हो और उसने देखा हो....?? सुभद्रा बच्चे यह तो अंधेरे में तीर चलाने वाली बात हो गई। अच्छा चलो मान भी लो ऐसा कुछ हुआ भी हो। तो क्या हो गया तुम क्यों इतनी परेशान हो रही हो.....??
ये शगुन अपशगुन कुछ नहीं होता है ।सब मन का भ्रम है। यह तुम्हारे मन का भय है ।जो तुम्हें डरा रहा है और तुम कब से इन बातों पर विश्वास करने लगी ।तुम तो ऐसी नहीं थी। तुम तो मां दुर्गा की अनन्य भक्त हो ...!!तुम भला कब से डरने लगी। क्या तुम्हें ज्ञात नहीं है कि माता रानी अपने भक्तों का कभी अनिष्ट होने नहीं देती है ।जाओ जाकर नहा धोकर एक दीपक जलाओ मां को भोग चढ़ाओ और दुर्गा सप्तशती का पाठ करो। ऐसा करने से तुम्हारे भय का नाश होगा और तुम्हारा मन भी शांत होगा। कुछ नहीं होगा तुम्हें और तुम्हारे परिवार को। मां जगदंबा पर विश्वास रखो सब सब मंगल मंगल होगा ..!
फिर सुभद्रा ने अपने पापा के कहे अनुसार ही नहा धोकर स्वच्छ कपड़े धारण किए घी का दीपक जलाकर माता को मखाने और मिठाई का भोग चढ़कर भक्ति भाव में लीन हो दुर्गा सप्तशती का पाठ आरंभ किया जैसे-जैसे ही पाठ का अध्याय बढ़ता गया।वैसे-वैसे ही सुभद्रा के मन से भय दूर होता गया। पाठ समाप्त करके सुभद्रा ने माता रानी का चरण वंदन कर नतमस्तक होकर आरती गाई और अपनी गलतियों के लिए मां से क्षमा याचना की....!!
और अपने परिवार के लिए मंगल कामनाएं कि सच"माता की महिमा है अपार"माता रानी की कृपा से आज तक सुभद्रा और उसका संपूर्ण परिवार सकुशल और सुखी है।
किरण