...

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दरीचे पर निगाहें
हर रोज़ की तरह
उस रोज़ भी दरीचे पर टिकी निगाहें
हाँ,था वही ख़ालीपन जो पूरित नहीं हो रहा था
भाविका की निगाहें आज भी अविजित को ढूँढती हैं
वो जानती है सच्चाई को शायद ये मुमकिन ही नहीं
अविजित को वो कभी देख भी पायेगी इस जन्म में ...