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दोस्ती (अंतिम भाग)
घूंघट में मालती को देखकर वो चौंक जाता है और खुश भी ही जाता है। उसके चेहरे के भाव देखकर अब लोग जोर जोर से हसने लगने है।
राजेन्द्र हस्ते हुए पूछते है, "क्यो भाई लड़की पसंद आई या नहीं?"
प्रतीक सबको प्रशन भरी नजरों से देखता है।
मालती : तुम तो मुझसे ही नहीं बोल पाए तो सबसे क्या बोलते इसलिए मेने ही हमारे घर वालो से हमारे रिश्ते की बात करदी।
प्रतीक ने मुस्कुरा कर उसको गले लगाया फिर सगाई की रस्में पूरी करी। सगाई हुई सबने खाना खाया फिर शाम को सब चले गए। एक दो दिन बाद उनके माता भी चले गए। कुछ दिनों में शादी की तारीख भी पक्की हो गई 2 हफ्ते बाद की तारीख थी। मालती, वर्षा और शिवम् मालती के गांव चले गए। प्रतीक, राजेश और गायत्री अपने गाँव चले गए। शादी के काम में सब इतना उलझ गए कि मालती और प्रतीक की बात ही ना हो पाई।
शादी का दिन आया तो सारा काम अच्छे से निपट गया अपने ससुराल जाकर कुछ दिन मालती ने गांव में ही गुजारे फिर वापस शहर आ गई। सब कुछ अब अच्छा हो गया था। वर्षा को नई दुनिया मिल गई थी शिवम् के साथ,मालती और प्रतीक के जीवन भी खुशियां भरने लगी थी।
दो साल मालती के घर में एक बेटी का जन्म हुआ और वर्षा के यहांँ एक बेटे का। दोनों का नाम करण हुआ तो लड़की का नाम दिव्या और लड़के का नाम प्रकाश रखा गया। दोनों का दाखिला भी एक ही विद्यालय में कराया गया। धीरे धीरे उनमें भी मित्रता होने लगी। जब बड़े हुए तो उनमें भी प्रेम हुआ और उनकी भी एक दूसरे से शादी कर दी गई।
मालती और वर्षा जो अच्छे दोस्त थे अब एक दूसरे की समधी ही चुकी थी। वो चारों अब बुढ़ापे में अपनी जवानी के दिनों को याद करने लग। चारों अब साथ ही रहते थे।

कभी वे अजनबी थे, फिर दोस्त हुए, उनकी दोस्ती में दरार भी आईं पर टूटी नहीं, और आज वो अपना बुढ़ापा भी साथ में गुजार रहे थे।

इस मतलबी दुनिया में अच्छे और सच्चे दोस्तो का मिलता भी कठिन है, यदि आपको कभी कहीं भी कोई अच्छा और सच्चा दोस्त मिले तो कोशिश कीजिएगा की उसका साथ कभी ना तो आप छोड़ें ना ही उन्हें छोड़ने दे।

© pooja gaur

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