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राम नवमी
आप सभी को राम नवमी की हार्दिक शुभकामनाएं राम नवमी के इस पावन अवसर पर श्री राम जी की बात न हो ऐसा तो हो ही नहीं सकता।वो अपनी माताओं से इतना स्नेह रखते थे की उन्होंने अपनी माता की आज्ञा पालन करने के लिए चौदह वर्ष का वनवास खुशी खुशी स्वीकार किया।समाज में नियमों का कड़ाई से पालन हो इसके लिए माँ सीताजी को भी त्याग दिया जिससे वो अत्यधिक प्रेम करते थे।हम पूछते हैं वो तो भगवान थे अपने लिए सुख भी चाह सकते थे।
फिर भी उन्होंने अपने लिए दुख को चुना।
क्योंकि वो एक राजा थे वो कहते हैं न जिस राह पे राजा चलेंगे उसी राह पे प्रजा चलेगी।
फिर कई बार हमारे मन में ये प्रश्न गूँजता रहता है।किसी के कहने पर उन्होंने माता सीता को छोड़ दिया ये बात उचित नहीं लगती।
तब तो सतयुग था।माता सीता का तो कोई दोष भी नहीं था।उस सतयुग में एक आदमी दस दस रानियाँ रख सकते थे।उन पर कोई दोष भी नहीं लगता था।फिर माता सीता पे दोष क्यों?उनकी अग्नि परीक्षा बार बार क्यों?
हमें ऐसा लगता है,नारियों के विषय में जो कहानियां लिखी जा रहीं हैं,ये पुराने सतयुग की धरोहर हैं। सीता माता के जिवित होते हुए भी यज्ञ में उनकी मूर्ति बना श्रीराम जी के साथ
बैठाया गया।माता के पुत्रों ने भी भरी सभा में राजा रामजी और प्रजा से ये प्रश्न किया।
हम पूछते हैं नारी क्यों लाचार कल भी हो जाती थी।आधुनिकता के इस युग में भी लाचार हो जाती हैं।सभी कितनी आसानी से कह देते हैं।रामायण महाभारत ग्रन्थ नारियों को लेकर रची गई है।लेकिन इसमें कहीं न कहीं पुरषों समाज का भी बहुत बड़ा हाथ है।
महाभारत में भी धृतराष्ट्र के सिर्फ आँखों में पट्टी बंधी थी।कानो में नहीं फिर भी वो अन्याय के विरुद्ध आवाज न उठा सके।पति भी ऐसे थे
अपनी ही पत्नी को दाँव पे लगा दिया।
क्या पत्नी भी कोई दाँव पे लगाने की वस्तु है।
युध्द हुआ मगर सबसे बड़े दोषी तो उनके स्वयं के पति थे जिनके कारण ये महायुद्ध हुआ।
पता नहीं क्यों कभी कभी कई बातें समझ के
परे होती हैं।फिर आज के युग में ये लगता है
इन्ही सब को देखते हुए नारी को अपने ऊपर अत्याचार होते देख आवाज़ उठाने की जरुरत महसूस होने लगी है।
सतयुग में एक बात तो हमें ये भी समझ आती है कारण भले ही सीताजी रही हों मगर कई राक्षसों का संहार श्री रामजी के हाथों ही हुआ।
हम सोचते हैं एक अवतार और लेना चाहिए
इस आधुनिक युग में भी होना चाहिए इस बार नारी को जरिया न बनाकर सीधा लड़ाई आर पार होनी चाहिए।
हमारे मन में जो विचार आए हमने लिख दिए
ये विचार किसी को भी ठेस पहुँचाए ऐसा सोच कर नहीं लिखे गए हैं।
© Manju Pandey Choubey