...

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गलती...
पुरुष गलती करे तो
वो बेचारा
बहक गया था
अब माफ़ी माँग रहा है
तो तुम्हें क्या परेशानी है?
है तो घर का चिराग ही...

स्त्री गलती करे तो...
इसके तो पहले से लक्षण खराब
माँ- बाप ने संस्कार नहीं दिए
खानदान की नाक कटवा दी
अब परिवार का हिस्सा नहीं हो सकती....

ऐसा दोगलापन क्यों ? क्यों गलती को गलती ही रहने नहीं दिया जाता। गलती को पुरुष की गलती या स्त्री की गलती में क्यों बाँट दिया जाता है... माफ़ कर सको तो कर दो, माफ़ नहीं कर सकते तो चुपचाप रास्ते बदल लो जीवन के। एक दूसरे पर कीचड़ उछालकर, सारे ज़माने में एक -दूसरे को नीचा दिखाकर क्या मिल जायेगा? शायद कुछ भी नहीं.... उल्टा , ज़िंदगी में आपने साथ साथ जो कोई ख़ुशनुमा लम्हें बिताए होंगे उनकी यादें भी कड़वाहट से भर जायेंगी। समाज और परिवार को ऐसा उदाहरण पेश कर रिश्तों की गरिमा को ठेस पहुँचाओगे ....और नई पीढ़ी के मन में रिश्तों के लिए जो गिरता हुआ सम्मान है उसे और गिराओगे ... ।

(आसपास की घटनाओं पर आत्ममंथन )

© संवेदना
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