...

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मैं जानती हूँ
मैं जानती हूँ कभी-कभी आप हार मान लेना चाहते हैं,
मैं जानती हूँ कभी-कभी आप परिस्थितियों से थक चुके होते हैं।
रोना चाहते हैं, मगर रोते नहीं।
चीखना चाहते हैं, मगर चुप रहते हैं।

मैं जानती हूँ बहुत मुश्किल होता है खुद को मनाना,
खुद को समझाना.. उस वक़्त जब लोग कहते हैं "सब ठीक हो जाएगा।
ये जानते हुए भी की अब कुछ भी ठीक नहीं हो सकता, ठीक वैसे आप नहीं हो सकते जैसे थे..
और इसके बाद भी इंतज़ार करना कितना ज़्यादा मुश्किल होता है।

कुछ लोगों को लगता है कि आप समझदार नहीं हैं,
और कुछ लोग कहते हैं कि आप बेवज़ह ही अधिक प्रतिक्रिया दे रहे हैं।

और आप खुद का दम घोंटना शुरू कर देते हैं,
आप आँसुओं को कैद करने लगते हैं..


मगर क्यों?

बिखरे उलझे बाल, थका हुआ चेहरा,
लाल आँखें, बेजान शरीर,
हार चुका दिल, और दम तोड़ चुका ख़्वाब..
इस सब के बाद भी मैं यही कहूँगी की "कोई बात नहीं"..
क्योंकि हमेशा "सब कुछ ठीक हो", ऐसा मुमकिन नहीं,
तो..
तो "सब कुछ ठीक" नहीं होना भी कभी कभी ठीक होता है..

तुम्हारी आँखों के नीचे गहरे काले घेरे, झुर्रियों से भरे गाल, सूखे होंठ, ढीला शरीर, फीकी मुस्कुराहट..
मगर इतना सब के बाद भी तुम खूबसूरत हो,
तुम्हारी मुस्कुराहट ख़ूबसूरत है।

तुम जैसे भी हो जो भी हो, वैसे ही सबसे अच्छे हो।

तो अगर रोना चाहो तो रो,
चीखना चाहो तो चीखो..
मगर कुछ भी स्पष्ट करने की ज़रूरत नहीं है।
क्योंकि जिसे समझना होगा समझेगा,
जिसे सुनना होगा सुनेगा।
और जिसे समर्थन करना होगा करेगा।
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