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प्रगति की जननी "जिज्ञासा"

अज्ञानता और अनिश्चितता जड़ है प्रगति की। अज्ञानता यानी के ज्ञान का अभाव जो जिज्ञासा उत्पन्न करती है और अनिश्चितता हर कार्य में पूर्णता लाने के लिए विवश करती हैं। पूर्णता के लिए हमें तथ्यों की आवश्यकता होती है और इन तथ्यों को तलाशने के लिए हमें गहराई में उतरना पड़ता है। जितना हम गहराई में उतरते हैं और तथ्य इकट्ठा करते हैं उतना ही चीजें स्पष्ट होती रहती हैं। यही स्पष्टता पूर्णता की प्राप्ति का साधन है। इसके लिए हमें कठिन प्रयास करने पड़ते हैं और इन कठिन प्रयासों को सहज करने के लिए जिज्ञासा एक अहम भूमिका निभाती हैं।

जी हां_ जिज्ञासा कठिनाइयों को कम ही नहीं बल्कि खत्म भी कर सकती है। जिज्ञासा हमारे मन मस्तिष्क का वह आभास और अहसास है जो धीरे-धीरे अज्ञानता के बंद चक्षुओं को खोलता जाता है। जिज्ञासा हर्षिता का एक स्वरूप भी है जो ज्ञान चक्षु खुलने पर प्रदर्शित होते ज्ञानपूर्ण खूबसूरत नजारों को महसूस कर हर्षोंउल्लास की अनुभूति कराती हैं। अगर आप इस हर्षोल्लास को संजो कर रखना चाहते हैं तो अपने आप को कभी भी पूर्ण ज्ञानी घोषित मत कीजिए। जहां ज्ञान की पूर्णता की अनुभूति होगी वही जिज्ञासा का अंत हो जाएगा।

कहते हैं ज्ञान का कोई अंत, कोई सीमा नहीं। अगर आप यह बात जानते हैं तो अपने आप को कभी भी पूर्णतः ज्ञानी घोषित मत कीजिए। क्योंकि जहां ज्ञान का अंत वही जिज्ञासा का भी अंत और जिज्ञासा का अंत यानी कठिनता की शुरुआत। क्योंकि जिज्ञासा आपकी प्रगति का एक सरल साधन है। जिज्ञासा आपकी प्रगति के कठिन मार्ग पर आपके लिए सुगमता के साधनों का प्रबंध करती हैं।

अक्सर वृद्धावस्था में पहुंचकर व्यक्ति स्वयं को ज्ञानी घोषित कर देते है। फलस्वरूप वे स्वयं को और अधिक जानने और सीखने की अपनी जिज्ञासा को खत्म करके खुद को प्रगति और ज्ञान के मार्ग पर चलने से रोक देते हैं। वृद्धावस्था में कठिनाइयों का यह एक मूल कारण है। वृद्धावस्था में ही नहीं बल्कि किसी भी अवस्था में अगर व्यक्ति खुद को पूर्णतः ज्ञानी समझने लगते हैं तो वह अपने जीवन में कठिनाइयों को आमंत्रित कर रहे होते हैं।

अक्सर यह देखा गया है कि जिसने भी खुद को अहंकार वशीभूत होकर पूर्णतः ज्ञानी घोषित किया है असल में वह सबसे अधिक अज्ञानी होते हैं। स्वयं को स्वयं ही ज्ञानी घोषित कर देना सबसे बड़ी अज्ञानता होती हैं। महापुरुषों की सूची निकालकर अध्ययन करने पर पता चलता है कि आज तक किसी भी महापुरुष ने स्वयं को पूरी तरह ज्ञानी होने का भ्रम नहीं पाला। क्योंकि उन्होंने अपनी अंतिम स्वांस तक अपनी जिज्ञासा को बनाए रखा और अपने प्राप्त ज्ञान से इंसानियत का भला बिना अहंकार करते हैं।

अहंकार आपकी ज्ञान चक्षु पर बधी वह पट्टी है जो आपको अंधकार के मार्ग पर ले जाती हैं और जिज्ञासा वह प्रकाश है जो ज्ञान चक्षु को खोलकर आपको प्रगति की रोशनी में सदैव नहलाती रहती है। इसलिए अपने अहंकार का अंत करें जिज्ञासा का नहीं। जिज्ञासा आपके जीवन का प्रकाश है, जिज्ञासा आपकी प्रगति के मार्ग की सरलता है, जिज्ञासा आपको वृद्धावस्था में भी स्वस्थ बनाए रखने की औषधि है और जिज्ञासा वह साधन है जो आपको आपकी आखरी स्वांस तक सम्मानित और हर्षित रखती हैं।

© Sunita Saini (Rani)

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