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एक पहेली मेरी जिंदगी की (part-2)
आज मै दिनभर उसिके बारे में सोच रहा था। वो बेतहाशा खूसूरत थी। मै उसकी फिर से दीदार करना चाहता था। सोचा मेरा शहर इतना भी बड़ा नहीं की उसे फिरसे ना देख पाऊं। दूसरे दिन सुबह उसी वक्त मै निकल गया।पर इस बार मेरा मकसद सिर्फ juggling नहीं था। मै उसी जगह जा के रुक गया। सोचा अभी वो आ ही रही होगी। धुंध छाई हुई थी। थोड़ी सी रोशनी के साथ धुंध थोड़ी कम होने तक रुका वहां। पर वो नहीं आईं आज। मै आगे गया दौड़ते हुए। वो नहीं दिखी। हां थोड़ा निराश था। सोचा इतनी ठंड में सुबह उठना कोई आसान बात नहीं। सायद आज वो सो गई होगी इसलिए juggling पे नहीं आईं। मै लोट गया।
दूसरे दिन मै जल्दी निकल गया यह सोच के की सायद वो कल जल्दी चली गई हो। में उसी जगह जा के रुक गया। इंतजार किया। रोशनी हो गई। धुंध छट गया। सुबह हो गई। वो आज भी नहीं आईं, आज भी नहीं दिखी।
उसकी बस एक दीदार ने मेरा मकसद बदल दिया था। में सुबह तो उठता था। juggling के लिए निकलता था। पर अब मेरा मकसद juggling का नहीं, एक और बार उसे देखने का था। उससे बात करने का। उससे जानने का। मुझे नहीं पता था कि वो कैसी लड़की थी। क्यूं वो नहीं आ रही थी juggling पे , क्या हुआ था। फिरभी में हर सुबह यही आरजू ले के निकलता था , की सायद आज वो दिख जाए। बेसक में उसके लिए कोई नहीं था। पर एक दीदार से वो मेरेलिए सायद बहत कुछ बन गई थी। क्या बन गई थी? पता नही। पर मुझे पता नहीं था क्या हुआ, क्यूं वो नहीं आरही।मुझे यह तक पता नहीं था कि वो थी कौन। मैने उससे पहली बार देखा था जबकि यह शहर मेरा है।पर उससे मुलाक़ात का एक आस लिए हर सुबह निकलता था juggling पे। हर रोज उसी जगह थोड़ी देर ठहरता। फिर थोड़ा आगे जाके। लोट आता।
(I'll post part 3 soon. Please appreciate and like if u interested in this story)
© newtoshayari