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कहाँ चले जाते हो जीवन
सिसकियां इतनी तेज थी कि रुक ही नहीं रही थी। मैं बार बार गालों को साफ करती और बार बार मेरी आँखें आंसुओं की ढेर सारी बूंदे टपका देती। कभी हाथों से पोछती तो कभी ओढ़नी के सिरे से । बहुत खोजा मैंने जीवन को पर मुझे...