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तरूणावस्था (भारतांकित भाग-४)
इस कवितरूपी कहानी को आगे बढ़ाते हुए कुछ तरूणावस्था की स्तिथियों पर प्रकाश डालता हूं। वो पहेला प्यार और मित्र मंडली। थोड़ी चटपटी यादें तो सबकी ही होती हैं इस अवस्था में। क्यों न उन लम्हों को याद करते हुए इन पंक्तियों में पिरोए और उस तरूणावस्था को पुनः जिएं।

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वो बचपन का प्यार भी अंकित कर दूं
जो मुकम्मल होने के लिए था ही नहीं
उनकी गली में जाके घूम गए कई बार
बहाने बात करने के भूल गए कई बार

अंकित वो राज भी कर दूं
जिसको कभी जताया नहीं
कॉलेज की वो लड़की
जिसको कभी पटाया नहीं

मां पापा की वो फोटो
जिसको कभी हटाया नही
पापा का पैर ही छुए
गले कभी लगाया नहीं

अंकित यह भी कर दूं
जो जमीन बेच के पढ़ने गए थे
वो अभी भुला नही पाए हैं
बाबूजी ने जो कर्ज लिए
वो अभी चुका नही पाए हैं

संघर्ष ये चलता रहेगा
जीवन का ये आयाम है
देश के काम का कुछ करूं
उसी में अब नाम है

थोड़ा अंकित दोस्ती भी कर लूं
की आधी सीख वही से आती है
जीवन में प्रेम का सार
मित्र मंडली ही तो बताती है

जो तुम पर न्योछावर
उसकी क्या कीमत लगाओगे
बाद जाने के मेरे
हम जैसा ना पाओगे

जो यात्राएं तुम्हारे साथ की
वो बड़ी यादगार रहीं
कुछ पहाड़ों में
तो कुछ सागर के पार रहीं
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to be continued.......

© अंकित राज "रासो"

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