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पशुता
मानव का ज़मीर ही कुछ ऐसा होता है जो उसे दानव से भी निर्दय और निर्मम बना देता है। अन्य सभी पशु भी ज़रूरत के लिए शिकार करते है , एक मानव ही है जो सब कुछ जान समझ कर भी अपनी विकृत मानसिकता को अंजाम देने के लिए अकाल्पनिक पशुता का परिचय देता है। वरना निर्भया बलात्कार कभी ना होता ,और ना उस पीड़िता के दर्द व पीड़ा पर कोई राजनीतिक खेल होता। आज मध्य प्रदेश में दोबारा से कुछ ऐसी घटना सामने आई है और आज भी कुछ राजनेता उसी पर अपने वर्चस्व को बढ़ाने हेतु कार्यरत है। पीड़िता की पीड़ा और अपराधियों की सजा से ज्यादा महत्वपूर्ण आज समाज में चर्चा हो गई है। वह चर्चा जो आज में आपसे कर रहा हूं और वहीं असुर यह चर्चा प्रावधानों के मध्य कचहरी में करेगा। यह हम सभी के मानव अस्तित्व पर प्रश्न चिन्ह है।
उस नारी के साथ दुष्कर्म एक बार नहीं हुआ है ,क्योंकि अब समाज के तौर पर सब उसी मानसिक चोट पर नित्य आघात करेंगे।
उस आरोपी और दानव ने तो महिला के शरीर को एक बार बार नोचा हैं। यह दुष्ट समाज अब उसे रोज़ नोचेगा ,अपने भिन्न भिन्न तरीकों से।
क्या हम इस पर उस पीड़िता से बात करना नहीं छोड़ सकते ?
क्या हम बिना बयान लिए दोषियों को सजा नहीं दे सकते है ?
क्या बार बार उसे उस दर्द और पीड़ा के मंजर को याद दिलाना आवश्यक है ?
क्या कचहरी में पेश करना इतना आवश्यक है ?
क्या ? जवाब दीजिए ? क्या ?

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