गांधीजी की शिक्षाएं और प्रासांगिकता -।
गांधीजी के मूल्य एवं वर्तमान प्रासंगिकता
अ-बच्चों के लिए
गांधी जी का दृढ़ विचार था जहां संस्कार हो वहां सिखाना- पढ़ाना कोई अर्थ नहीं रखता। वर्तमान समय में संस्कार निर्माण की सबसे बड़ी जरूरत है ।न विज्ञान से भला होता है, न धर्म से भला होता है। भला होता है तो सिर्फ वैज्ञानिक या धार्मिक आचरण से। यदि विज्ञान से भला होता तो अमेरिका जैसे देश में कोई क्यों बंदूक उठा कर बच्चों की कक्षा में उन्हें बंदी बनाता या गोली चलाता? धर्म से यदि भला होता तो आज क्यों एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों से इतने डरे हुए और असुरक्षित महसूस करते। आज जरूरत है मानवता को यह सीखने की और वह हमें पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों का निर्माण करने से ही मिल सकती है।
आज के इस दूषित वातावरण में व्यायाम का सर्वाधिक महत्व है और गांधी जी ने उस समय ही व्यायाम का महत्व समझ लिया था ।वे अपनी जीवनी में लिखते हैं मैंने व्यायाम के बदले टहलने को चुना था, जिससे शरीर को बलवान बनाए रखने में मदद मिली और यह हवा खोरी की आदत मेरी जीवन पर्यंत रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा रही।
उन्होंने सुंदर हस्त लेख की भी महती आवश्यकता बताई थी और...
अ-बच्चों के लिए
गांधी जी का दृढ़ विचार था जहां संस्कार हो वहां सिखाना- पढ़ाना कोई अर्थ नहीं रखता। वर्तमान समय में संस्कार निर्माण की सबसे बड़ी जरूरत है ।न विज्ञान से भला होता है, न धर्म से भला होता है। भला होता है तो सिर्फ वैज्ञानिक या धार्मिक आचरण से। यदि विज्ञान से भला होता तो अमेरिका जैसे देश में कोई क्यों बंदूक उठा कर बच्चों की कक्षा में उन्हें बंदी बनाता या गोली चलाता? धर्म से यदि भला होता तो आज क्यों एक धर्म के अनुयायी दूसरे धर्म के अनुयायियों से इतने डरे हुए और असुरक्षित महसूस करते। आज जरूरत है मानवता को यह सीखने की और वह हमें पारिवारिक और सामाजिक संस्कारों का निर्माण करने से ही मिल सकती है।
आज के इस दूषित वातावरण में व्यायाम का सर्वाधिक महत्व है और गांधी जी ने उस समय ही व्यायाम का महत्व समझ लिया था ।वे अपनी जीवनी में लिखते हैं मैंने व्यायाम के बदले टहलने को चुना था, जिससे शरीर को बलवान बनाए रखने में मदद मिली और यह हवा खोरी की आदत मेरी जीवन पर्यंत रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा रही।
उन्होंने सुंदर हस्त लेख की भी महती आवश्यकता बताई थी और...