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समर्थ सदगुरू श्री साईनाथ महाराज
॥ अनंत कोटी ब्रम्हांडनायक राजाधिराज योगीराज परं ब्रम्हं श्री सच्चिदानंद सदगुरु श्री साईनाथ महाराज की जय ॥

।।ॐ साईं राम ।।

आज़ गुरु पूर्णिमा के इस पुनीत अवसर पर समर्थ सदगुरू श्री साईनाथ महाराज को मेरा शत शत नमन ! साईं बाबा का परिचय देने की न तो मेरी सामर्थ्य है न ही आवश्यकता ।

हम सा भाग्यशाली और कौन होगा ? कि हमनें उसी पुण्य भूमि पर जन्म पाया जिसके एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र शिरडी में श्री साईं बाबा अवतरित हुए । यह देश धन्य है जहां साईं बाबा के रूप में यह असाधारण,परम श्रेष्ठ, अनमोल विशुद्ध रत्न अवतरित हुआ । कहने की आवश्यकता नहीं कि यहां से उनका आलोक संपुर्ण विश्व में फैला और जन जन को अपने आलोक से आलोकित किया । न केवल हमारे देश में बल्कि विश्व के कोने कोने में स्थित साईं बाबा के मंदिर इसके जिवंत प्रमाण हैं ।

ब्रम्ह ज्ञानी होते हुए भी किसी गुफा, किसी वन तथा लोगों से दूर रहने की बजाय साधारण जन समाज में एक साधारण फकीर की तरह जीवन व्यापन कर उन्होंने उदाहरण से एक सफल जीवन कैसे जिया जाए इसकी शिक्षा दी । उनकी जिवनी पर पहले से ढेरों साहित्य उपलब्ध है अतः मैं इस लेख को में सांई बाबा से संबंधित अपने अनुभव तक ही सीमित रखूंगा ।

यह मेरे निजी अनुभव है और यदि आपके लिए सहायक सिद्ध हो तो मुझे बेहद खुशी होगी परन्तु इसका यह अर्थ बिल्कुल नहीं है कि मैं जो कह रहा हूं उसे आप मान लें सबसे उपयुक्त तरीका तो यही है कि आप स्वयं इन्हें अनुभव करें। हाथ कंगन को आरसी क्या ?

साईं बाबा का यह वैशिष्ट्य रहा है कि वे न केवल आध्यात्मिक जीवन के उत्थान अपितु भौतिक जीवन के उत्थान के लिए प्रयासरत रहे तब भी जब वह भौतिक शरीर में मौजूद थे और आज़ भी । मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि एक बार उनकी शरण में जो गया वह लगातार उत्थान की ओर चल पड़ता है । संभव है कि वह पहले भौतिकता से जुड़ी हो पर वह आगे अवश्य आध्यात्म में परिणत हो जाती है। असफलता या लौटना असंभव है ।
उन्होंने ‌न कोई गुप्त मंत्र दिया न ही किसी रस्मोरिवाज का ही प्रतिपादन किया । साईं बाबा ने सबसे ज्यादा जिसे महत्व दिया वह है " अपने गुरु पर अटल श्रद्धा रखने पर" । उनका कथन है -: ' व्यर्थ में किसी से उपदेश प्राप्त करने का प्रयत्न न करो । मुझे ही अपने विचारों तथा कर्मों का मुख्य उद्देश्य बना लो तब तुम्हें निस्संदेह ही परमार्थ की प्राप्ति हो जाएगी। मेरी ओर अन्यन भाव से देखो तो मैं भी तुम्हारी ओर वैसे ही देखूंगा। किन्हीं साधनाओं या शास्त्रों के अध्ययन की आवश्यकता नहीं, वरन केवल गुरु में विश्वास ही पर्याप्त है ।पूर्ण विश्वास रखो कि गुरु ही कर्ता है और वह धन्य है जो गुरु की महानता से परिचित हो उसे हरि,हर और ब्रह्म ( त्रिमूर्ति) का अवतार समझता है "

सर्वधर्म समभाव की एक बेहतरीन मिसाल साईं भक्तो के रूप में आपको मिल जाएगी साईं बाबा के दर्शन भीड़ में आपको हर एक धर्म, भाषा, प्रांत का भक्त मिल जाएगा बिना किसी पूर्वाग्रह के, बिना किसी अलगाव के जैसे सब कुछ भुलाकर सिर्फ असली धर्म 'मानवीयता' को मानते हों । हर भक्त के पास अपना एक विशिष्ट अनुभव है साईं बाबा के बारे में ! यह साईं बाबा के ही अपार शक्ति का एक अद्भुत प्रभाव है ।

बाबा ने स्वयं कभी उपवास नहीं किया, न ही उन्होंने दूसरों को करने दिया । उपवास करने वालों का मन कभी शांत नहीं रहता,तब उन्हें परमार्थ की प्राप्ति कैसे संभव है ? प्रथम आत्मा की तृप्ति होना आवश्यक है। यदि शरीर में कुछ अन्न की उर्जा न हो तो हम कौन सी आंख से ईश्वर को देखेंगे; किस जिव्हा से उनकी महानता का वर्णन करेंगे और किन कानों से उसका श्रवण करेंगे । सारांश यह है कि न तो हमें उपवास करना चाहिए न ही अधिक भोजन ।

साईं बाबा ने जिन दो महत्त्वपूर्ण गुणों पर जोर दिया वह है - 'श्रद्धा और सबूरी'
अर्थात दृढ़ निष्ठा और धैर्य ।
परमपिता परमात्मा पर , अपने गुरु पर अटल श्रद्धा और आस्था रखो । गुरु परमात्मा भिन्न भिन्न नहीं है। गुरु परमात्मा का ही रूप है ।
कहा भी है -
" गुरुर ब्रह्मा गुरुर विष्णु गुरुर देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात्परब्रह्मा तस्मै श्री गुरुवे नमः

धैर्य ही मनुष्य में मनुष्यत्व है । धैर्य धारण करने से समस्त पाप और मोह नष्ट होकर हर प्रकार के संकट दूर होते हैं और भय जाता रहता है।

अतः श्रद्धा और सबूरी यह गुण जीवन में कठिन से कठिन परिस्थिति में भी आपको संबल देंगे और आप किसी भी परिस्थिति का सामना करने में अपने आपको सक्षम पायेंगे।

यह भक्तों का अनुभव है कि बाबा अभी भी विद्यमान हैं और पहले के ही भांति अपने भक्तों को सहायता पहुंचाया करते हैं।

गुरु पूर्णिमा के इस पुनीत अवसर पर समर्थ सदगुरू को स्मरण करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ । उनको कोटि कोटि नमन !

आपने समय निकाल कर मेरे अनुभव को पढ़ा, आपका हार्दिक आभार !

। श्री सचिदानंद सतगुरु साईनाथ महाराज की जय ।।

© aum 'sai'