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पार्क ऑफ मेडिकल कॉलेज
मेरी एक बहुत बुरी आदत है कि मेरे पास अच्छे कपड़े होते हैं, लेकिन मैं पहनता नहीं हूं; अच्छी साइकिल होती है, लेकिन मैं चढ़ता नहीं हूं ; कुछ लोग कहते हैं चलिए, मैं अपनी गाड़ी से छोड़ आता हूं , लेकिन , पता नहीं मुझे क्या हो जाता . मैं उन्हें कह बैठता हूं  चलिए, चलिए , मैं पैदल ही आ जाता हूं . बस , आप से जल्द पहुंच जाऊंगा ।

मेरे मित्र ने 1 दिन बड़ी जिद्द से मुझे पूछा - भाई , शैलेंद्र ! तुम ऐसा क्यों करते हो ? कपड़े रहते हैं , फिर भी नहीं पहनते ; कपड़े पहनते हो तो कुर्सी पर धराम से बैठ जाते . अब देखो! ये आदतें मुझे अच्छी नहीं लगती. आज तुम्हें बताना पड़ेगा कि तुम ऐसा क्यों करते हो. मैं जानता हूं , इन सब चीजों के महत्त्व को तुम अच्छी तरह समझते हो, फिर भी पता नहीं तुम्हारी क्या सोच है!

मैंने कहा- ठीक है, ठीक है ,कोई बात नहीं . दरअसल , मुझे इन सब चीजों का शौक नहीं है. फिर उसने पूछा शौक क्यों नहीं है? जब मैंने उसे यह समझाने की कोशिश की तो वह फिर अगला क्वेश्चन दाग गया , क्योंकि उसने ठान ली थी कि आज वह मुझे पूरा परेशान करेगा, लेकिन इसका राज जरूर जानेगा . उसे पता था कि मुझे बिना परेशान किए हुए वह बातों को अंदर से उगलवा नहीं सकता ।

अंत में उसने वह राज मुझसे उगलवा ही लिए। संसार में होने वाली बहुत छोटी सी छोटी घटना व्यक्ति के जीवन पर गहरा असर छोड़ती हैं मरे साथ भी ऐसा ही हुआ था जिसने मेरी सोच बिल्कुल बदल दी थी। हमें इनमें से कई घटनाओं को बारीकी से लेना चाहिए तो कई को हल्के से ।

बड़े-बड़े शहरों में मेरा आना_जाना होता था। छात्र जीवन से लेकर आज तक कई जगहों की सैर की। एक समय था जब नौकरी के सिलसिले में बड़े-बड़े शहरों में फुटपाथ पर चक्कर लगाया करता था , लेकिन तब हमें इस बात का एहसास नहीं था ; पर अब , जब काफी मशक्कत के बाद जिंदगी जीने का मौका मिला , तो महसूस किया कि वह एहसास गलत था।

उन दिनों सब चीजों में सबसे आकर्षित करने वाली जो चीज मुझे लगती थी , वो थे बड़े-बड़े पार्क और उसके सैलानी। कहीं-कहीं बैठे जोड़े ; आपस में प्रेम की गुफ्तगू करते हुए पिकनिक मनाते लोग; पाव भाजी की दुकानें; बच्चों के खिलौने ;...