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आशंका
जैसे-जैसे शादी की तारीख नजदीक आती जा रही थी, उसका मन आशंका से भरता जा रहा था ।
देखा तो नहीं था सिर्फ फोटो ही तो देखा था अपने भावी जीवनसाथी की ।
पास पड़ोस की बात तो नहीं थी, कि पता चलता ।
उसने जो कुछ अपने घर में देखा था, खुद उसने भी जो व्यवहार किया था वही चित्र उभर रहे थे, यही सबकुछ उसके साथ भी होने वाला था सोच रही थी ।
अंत में नहीं रहा गया तो एकांत पा माँ के सीने से लग रो पड़ी और पूछ ही लिया, हे माँ मेरे साथ भी वैसा ही होगा न जैसा हमने भाभी के साथ किया है, दहाड़ मार कर रो पड़ी ।
तब माँ ने ढाढ़स बंधाते हुए कहा था, नहीं रे हमने देने में क्या कसर छोड़ी है, बिना मांगे सबकुछ तो दिया है, लड़का भी पढ़ा लिखा शालीन और उच्च पद पर आसीन है । फिर कहे को चिंता करती है, जैसे उसने खुद को भी सांत्वना दिया हो ।
माँ भाभी के पिता जी ने भी तो मुंह मांगा दिया, देते ही रहते हैं भाभी हर काम सलीके से करती है फिर भी हर कोई कमी ही निकाला करता है बात-बात पर ताने सुनती है, कभी पलट कर जवाब नहीं देती, बेटी ने कहा ।
सुनकर माँ के भी सर पर चिंता की लकीरें उभर आई थीं ।
अंत में शादी का शुभ दिन भी आया, ब्याह कर ससुराल आगयी थी वो ।
आज चौथा दिन था ससुराल में, माँ का फोन आया कुछ उदास स्वर में माँ ने पूछा, बेटी सब ठीक तो है न, कोई परेशानी तो नहीं ?
माँ यहाँ आकर मुझे पता चला कि ससुराल किसे कहते हैं,
माँ ये लोग बहुत अच्छे हैं, मुझे तो ठीक से खाना बनाने भी नहीं आता लेकिन माँ जी और ननद मिलकर सारे काम करवा देती हैं, कभी किसी ने बेरुखी से बात नहीं किया ।
माँ हम लोगों ने भाभी के साथ बहुत अन्याय किया है, और उसने फोन काट दिया ।

© Nand Gopal Agnihotri