एक पत्र तुम्हारे लिए
सोचती हूं, आज तुम्हें पत्र लिख ही दूं। इतने दिनों से लिखने का ख़्याल सिर्फ ख़्याल ही बना हुआ है, वक्त ही नहीं निकाल पाई। या ये कहूं कि खुद को व्यस्त रखने का प्रयास कर रही थी। पर तुम काम के बीच में भी मुझे अकेली कहां छोड़ते हो। चले आते हो मेरे साथ साथ।
तुम सोचोगे,आज मुझे ये क्या सूझी? आजकल कौन किसीको पत्र लिखता है? पर तुम तो जानते ही हो, मैं जरा अलग किस्म की हूं। आज भी उसी दौर में जी रही हूं, जहां तुम छोड़ कर गए थे। बोलने में अब भी उतनी ही हिचक होती है, जितनी बरसों पहले हुआ करती थी। तुम भी तो कहते थे, "अनु, तुम जितना अच्छे ढ़ंग से लिखकर अपनी बात कहती हो, क्या बोलकर नहीं कह सकती?" सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपनी बात व्यक्त कर ही नहीं सकती क्योंकि आज तक किसी ने ना तो मेरी बात सुनी और ना ही समझी। पर देखा जाए तो मेरी कम बोलने की आदत को तुम्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए। अगर मैं बोलने में ना हिचकिचाती तो खतों का सिलसिला कैसे शुरू होता??? सोचो,सोचो......।पर क्या तुम्हें पता है, तुम वो एकमात्र इंसान हो जिसने मुझमें आत्मविश्वास भरा , मुझे अपनी बात दूसरों के सामने रखना सिखाया। तुम अच्छे वक्ता हो पर मेरे लिए तुम अच्छे श्रोता भी बने। हमेशा मुझे अच्छे से सुना और समझा भी। अब तो मैं बोलकर भी अपने विचार व्यक्त कर सकती हूं पर उतनी कुशल वक्ता नहीं बन पाई जितना तुम हो और मेरे लिए तुम चाहते थे कि मैं बनूं। आज ये पत्र लिख रही हूं शायद...... पुरानी यादों को ताजा करने के लिए। हमारे प्रेम को संभाले रखा है ऐसे कितने ही पत्रों ने। वो दिन भी क्या खूब थे। वो किताब आज भी हमारे खतों की खुशबू से महक रही होगी , जो हमारे प्रेम की साक्षी थी। प्रेम.......वो प्रेम जो अब तक हमारे मन को जोड़े हुए है इतने सालों बाद भी। वो प्रेम, जो हमें प्रेरणा देता है, भरोसे और संयम की। भरोसा, एक दूसरे पर और संयम, अपने आप पर ।
तुम्हारा प्रेम मेरे लिए हमेशा प्रेरणा बना है । लिखने की प्रेरणा तुमसे मिली, रिश्तों को निभाने की प्रेरणा तुमसे मिली। पता नहीं तुम किस मिट्टी से बने हो, कैसे कर लेते हो इतना कुछ, सबके लिए। मैं शायद कभी कमजोर पड़ भी जाऊं, पर तुम हमेशा हिम्मत के साथ खड़े रहते हो और तुम्हारी यही हिम्मत मुझे भी हिम्मत देती है। तुम्हारी हिम्मत मुझे आश्चर्यचकित करती है , शायद इसलिए कि मैंने आजतक अपने आस पास के पुरुषों को हमेशा कमजोर ही पाया है फिर चाहे वो पिताजी हों, भाई या फिर कोई और। यहां कमजोरी का मतलब किसी शारीरिक दुर्बलता से नहीं है पर औरतों को प्रताड़ित करने वाले, उनसे प्रतिस्पर्धा करने वाले और उनको बेइज्जत करके उनको नीचा दिखा कर अपने अहं की संतुष्टि करने वाले पुरुष को मैं कमजोर ही मानती हूं, मानसिक रूप से कमजोर।
तुमसे मिलकर जाना कि पाषाण हृदय होना पुरुषत्व की पहचान नहीं है, बल्कि जो स्त्री के स्त्रीत्व का मान रख सके, वही होता है सच्चा पुरुष। शायद प्रेम भी एक कारण है हृदय की कोमलता का। तुमने प्रेम को अपने जीवन में ग्रहण किया,यही तुम्हारे पुरुषत्व का उत्कर्ष है। यही वजह है कि हमारे बीच स्त्री-पुरुष का भेद कभी महसूस ही नहीं हुआ। तुमने मुझे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व समझा और मैंने तुम्हारे व्यक्तित्व को स्वीकार किया, बिल्कुल वैसा , जैसे तुम हो, बिना कोई परिवर्तन की शर्त रखे।
बस यही सोच हमारे प्रेम को पोषित किए हुए है इतने लंबे समय से। यही राज़ है कि आज तक हमारे बीच कोई मतभेद, कोई गलतफहमियां नहीं पनपी। तो बस आगे भी इसी तरह निभा लेना मुझसे। मेरे गुस्सैल स्वभाव को जैसे आज तक झेला है, वैसे ही झेल लेना, बस और कुछ नहीं 😀😀🤗🤗।
और भी बहुत सारी बातें करनी हैं तुमसे, पर आज नहीं, फिर कभी.....।
तब तक अपना ख्याल रखना, मेरी अमानत समझकर।
तुम सोचोगे,आज मुझे ये क्या सूझी? आजकल कौन किसीको पत्र लिखता है? पर तुम तो जानते ही हो, मैं जरा अलग किस्म की हूं। आज भी उसी दौर में जी रही हूं, जहां तुम छोड़ कर गए थे। बोलने में अब भी उतनी ही हिचक होती है, जितनी बरसों पहले हुआ करती थी। तुम भी तो कहते थे, "अनु, तुम जितना अच्छे ढ़ंग से लिखकर अपनी बात कहती हो, क्या बोलकर नहीं कह सकती?" सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपनी बात व्यक्त कर ही नहीं सकती क्योंकि आज तक किसी ने ना तो मेरी बात सुनी और ना ही समझी। पर देखा जाए तो मेरी कम बोलने की आदत को तुम्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए। अगर मैं बोलने में ना हिचकिचाती तो खतों का सिलसिला कैसे शुरू होता??? सोचो,सोचो......।पर क्या तुम्हें पता है, तुम वो एकमात्र इंसान हो जिसने मुझमें आत्मविश्वास भरा , मुझे अपनी बात दूसरों के सामने रखना सिखाया। तुम अच्छे वक्ता हो पर मेरे लिए तुम अच्छे श्रोता भी बने। हमेशा मुझे अच्छे से सुना और समझा भी। अब तो मैं बोलकर भी अपने विचार व्यक्त कर सकती हूं पर उतनी कुशल वक्ता नहीं बन पाई जितना तुम हो और मेरे लिए तुम चाहते थे कि मैं बनूं। आज ये पत्र लिख रही हूं शायद...... पुरानी यादों को ताजा करने के लिए। हमारे प्रेम को संभाले रखा है ऐसे कितने ही पत्रों ने। वो दिन भी क्या खूब थे। वो किताब आज भी हमारे खतों की खुशबू से महक रही होगी , जो हमारे प्रेम की साक्षी थी। प्रेम.......वो प्रेम जो अब तक हमारे मन को जोड़े हुए है इतने सालों बाद भी। वो प्रेम, जो हमें प्रेरणा देता है, भरोसे और संयम की। भरोसा, एक दूसरे पर और संयम, अपने आप पर ।
तुम्हारा प्रेम मेरे लिए हमेशा प्रेरणा बना है । लिखने की प्रेरणा तुमसे मिली, रिश्तों को निभाने की प्रेरणा तुमसे मिली। पता नहीं तुम किस मिट्टी से बने हो, कैसे कर लेते हो इतना कुछ, सबके लिए। मैं शायद कभी कमजोर पड़ भी जाऊं, पर तुम हमेशा हिम्मत के साथ खड़े रहते हो और तुम्हारी यही हिम्मत मुझे भी हिम्मत देती है। तुम्हारी हिम्मत मुझे आश्चर्यचकित करती है , शायद इसलिए कि मैंने आजतक अपने आस पास के पुरुषों को हमेशा कमजोर ही पाया है फिर चाहे वो पिताजी हों, भाई या फिर कोई और। यहां कमजोरी का मतलब किसी शारीरिक दुर्बलता से नहीं है पर औरतों को प्रताड़ित करने वाले, उनसे प्रतिस्पर्धा करने वाले और उनको बेइज्जत करके उनको नीचा दिखा कर अपने अहं की संतुष्टि करने वाले पुरुष को मैं कमजोर ही मानती हूं, मानसिक रूप से कमजोर।
तुमसे मिलकर जाना कि पाषाण हृदय होना पुरुषत्व की पहचान नहीं है, बल्कि जो स्त्री के स्त्रीत्व का मान रख सके, वही होता है सच्चा पुरुष। शायद प्रेम भी एक कारण है हृदय की कोमलता का। तुमने प्रेम को अपने जीवन में ग्रहण किया,यही तुम्हारे पुरुषत्व का उत्कर्ष है। यही वजह है कि हमारे बीच स्त्री-पुरुष का भेद कभी महसूस ही नहीं हुआ। तुमने मुझे एक स्वतंत्र व्यक्तित्व समझा और मैंने तुम्हारे व्यक्तित्व को स्वीकार किया, बिल्कुल वैसा , जैसे तुम हो, बिना कोई परिवर्तन की शर्त रखे।
बस यही सोच हमारे प्रेम को पोषित किए हुए है इतने लंबे समय से। यही राज़ है कि आज तक हमारे बीच कोई मतभेद, कोई गलतफहमियां नहीं पनपी। तो बस आगे भी इसी तरह निभा लेना मुझसे। मेरे गुस्सैल स्वभाव को जैसे आज तक झेला है, वैसे ही झेल लेना, बस और कुछ नहीं 😀😀🤗🤗।
और भी बहुत सारी बातें करनी हैं तुमसे, पर आज नहीं, फिर कभी.....।
तब तक अपना ख्याल रखना, मेरी अमानत समझकर।