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एक पत्र तुम्हारे लिए
सोचती हूं, आज तुम्हें पत्र लिख ही दूं। इतने दिनों से लिखने का ख़्याल सिर्फ ख़्याल ही बना हुआ है, वक्त ही नहीं निकाल पाई। या ये कहूं कि खुद को व्यस्त रखने का प्रयास कर रही थी। पर तुम काम के बीच में भी मुझे अकेली कहां छोड़ते हो। चले आते हो मेरे साथ साथ।
तुम सोचोगे,आज मुझे ये क्या सूझी? आजकल कौन किसीको पत्र लिखता है? पर तुम तो जानते ही हो, मैं जरा अलग किस्म की हूं। आज भी उसी दौर में जी रही हूं, जहां तुम छोड़ कर गए थे। बोलने में अब भी उतनी ही हिचक होती है, जितनी बरसों पहले हुआ करती थी। तुम भी तो कहते थे, "अनु, तुम जितना अच्छे ढ़ंग से लिखकर अपनी बात कहती हो, क्या बोलकर नहीं कह सकती?" सच कहूं तो मुझे ऐसा लगता था कि मैं अपनी बात व्यक्त कर ही नहीं सकती क्योंकि आज तक किसी ने ना तो मेरी बात सुनी और ना ही समझी। पर देखा जाए तो मेरी कम बोलने की आदत को तुम्हें शुक्रिया अदा करना चाहिए। अगर...