खुद ही खो गये, खुद के निर्माण में
वर्तमान में हम जिस जगह पर खड़े हैं, वहाँ से महज एक कदम दूर हमारा एक और रूप भी होता है, बस फर्क इतना है के वो हजारों सपने बुने हुए, एक सुव्यवस्थित जीवन शैली को अपनाये हुए एक संतुलित और सुखद जीवन की कल्पना किये बैठा है| पर इस एक कदम की दूरी करोड़ों मीलों से भी कहीं अधिक है| बड़ी विचित्र विडम्बना है कि हम दोहरा जीवन एक ही समय में एक साथ जी रहे हैं, कभी तो जिन्दगी में जो मिला उसी में संतोष कर लेते हैं, तो कभी सांसारिक चकाचौंध में उलझ कर तनाव ग्रसित हो...