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डिप्रेशन
डिप्रेशन का मर्ज़ हमारे मआशरे में हर तरफ फ़ैल चुका है। हम सभी ने अपनी ज़िंदगी के किसी न किसी पड़ाव पर स्वयं को उदास और हताश महसूस किया होगा। असफलता, संघर्ष और किसी अपने से बिछड़ जाने के कारण दुखी होना बहुत ही आम और सामान्य है। परन्तु अगर अप्रसन्नता, दुःख, लाचारी, निराशा जैसी भावनाएं कुछ दिनों से लेकर कुछ महीनों तक बनी रहती है और व्यक्ति को सामान्य रूप से अपनी दिनचर्या जारी रखने में भी असमर्थ बना देती है।तब यह डिप्रेशन नामक मानसिक रोग का संकेत हो सकता है।
डिप्रेशन की बड़ी वजूहात में में से एक वजह नाकामी के बाद का एहसास है। हम अक्सर औकात अपनी नाकामियों की सज़ा खुद को ज़रूरत से ज़्यादा दे देते हैं। मिसाल के तौर पर आज कल के मुकाबले के दौर मे जब हम ताअली के मैदान में अपने दोस्तों की तरह performance नहीं दे पाते जिस की हमें ख्वाहिश थी, तो इस की वजह से हम अपने आप को कसूर वार ठहराते हैं।सब से पहले हमें ये समझने की जरूरत है कि हम इंसानों के मआमलाते ज़िन्दगी पर इख्तियार इंतेहाई महमूद है। फिर इस के साथ - साथ तक़दीर का भी अपना किरदार है। इन्सान को समझ लेना चाहिए कि इस की ज़िन्दगी पर इस का control इंतेहाई महदूद हद तक है।
डिप्रेशन की दो किस्में हैं। दोनों किस्म के डिप्रेशन क्रोनिक हो सकते हैं (यानी एक लम्बी अवधि में) अगर उनका इलाज न किया जाए।
1. डिप्रेशन disorder : इस रोग के अंदर डिप्रेशन बार बार दोहराया जाता है। इन एपिसोड के दौरान रोगी उदास मनोदशा और रूचि की हानि का अनुभव करता है और कम से कम दो हफ्तों तक होने वाली गतिविधि के लिए उसकी ऊर्जा कम हो जाती है।
2. बाइपोलर effective disorder: एक मनोवैज्ञानिक बीमारी है जिसमें गंभीर मूड़ शामिल है। इसमें डिप्रेशन पागलपन का रूप लेता है और कई महीनों तक रह सकता है।इस समय रोगी को नींद नहीं आती,भूख नहीं लगती।

डिप्रेशन को दूर करने के लिए अच्छे मनोचिकित्सक से परामर्श ज़रूर करना चाहिए, अपने आप को अकेला न रहने दें,सुबह-शाम टहलने जाएं, सकारात्मक बातें पढ़िए और बोलिए।
डिप्रेशन के साथ रहना मुश्किल है, लेकिन थैरपी ज़िन्दगी के मेएयार को बेहतर बनाने में मदद कर सकती है।
WHO की मानें तो, दुनियाभर में लगभग 30 करोड़ से ज्यादा लोग इस समस्या से ग्रस्त हैं, भारत में यह आंकड़ा 5 करोड़ से ज्यादा है जो कि एक बहुत गंभीर समस्या है।
सामान्यत डिप्रेशन किशोरावस्था या 30 से 40 साल की उम्र में शुरू होता है लेकिन यह किसी भी उम्र में हो सकता है। पुरुषों की तुलना में महिलाओं में डिप्रेशन की समस्या से ग्रस्त होने की सम्भावना ज़्यादा होती है।
मानसिक कारकों के अलावा हार्मोन्स का असंतुलित होना डिप्रेशन का कारण हो सकता है।
जब डिप्रेशन सबसे खराब स्थिति में पहुंचता है तो आत्महत्या का कारण बनता है।
हर साल आत्महत्या की वजह से लगभग 80 हजार लोग मर जाते हैं। यह जानकार हैरानी होती है कि आत्महत्या 15 से 29 वर्षीय बच्चों में मृत्यु का दूसरा प्रमुख कारण है और जाने - अनजाने लगभग 76से85 प्रतिशत लोग इसके शिकार हो जाते हैं।


© Zakiya Kausar