...

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दहेज...
#एक और सच्चाई.....
ढेरों उम्मीदों के साथ बाबुल ने अपनी बेटी को विदा किया
अपने सामर्थ्य से भी अधिक, शादी में उन्होंने लगा दिया
बेटी की खुशियों की खातिर अपनी पगड़ी को भी उन्होंने झुका दिया..
विदा की घड़ी आई तो सभी की आंखों से अश्रु धार बही ,पर पिता ने हंसते-हंसते अपने दिल के टुकड़े को विदा किया..

नया परिवार ,नयी खुशियों की उम्मीद ले बेटी थी वह विदा हुई
पर खुशियों की सौगात में उसे ..दहेज की वह चिता मिली

जिस पिता ने अपना आत्मसम्मान त्याग दिया ,
अपनी नाजों से पाली बेटी को पराये घर भेज दिया ,
बेटी खुश रहे इस खातिर वह पिता कर्जे में डूब गया
पर फिर भी उस परिवार ने कहा - 'तेरे पिता ने हमें क्या दिया'

नाजो से पली वो बेटी हर दिन मरने को मजबूर हुई
किसी के दिल का टुकड़ा थी वह ,जो खाने के टुकड़े को तरस रही
रोज उसे पीटा गया ,वह रोती रही.. बस अपने ही कर्मों को वह कोसती रही ..
जिस इंसान का साथ ..सात जन्म निभाने को ,अपना परिवार छोड़ उसके साथ पराये घर आई थी ,..
पर एक दिन उसी इंसान ने उसे ....जिंदा जला दिया ...
उसके लिए अपनों को छोड़ आई उस बेटी को चरित्रहीन करार दिया ..और अपने पाप को उसने आत्महत्या बता दिया
अपने दुःख का अंत समझ ..आग में जलती इस बेटी की चीख मुस्कुराहट में बदल गई ..शायद आज वह सोन चिरैया इस दुनिया से सच में उड़ गई ......


सच कहूं यह आसान नहीं था मेरे लिए लिखना, लिखते वक्त आंखें नम थी ..कि
जो हम लिख नहीं पा रहे वह न जाने आज कितनी ही बेटियां सह रही है और न जाने कितनी ही बेटियां यह सह चुकी है

अफ़सोस होता है यह देखकर जहां नारी को देवी कहा गया.. वहां उसे दर्जा इंसान का भी नहीं।
© sapna