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वातावरण खुशनुमा और संस्कारक्षम हो
घरेलू वातावरण जहाँ संयुक्त परिवार पहले एक ही जगह इकट्ठे हो रहा करते थे ,परन्तु वक्त के साथ धीरे धीरे परिवेश
बदल रहा है ,बदलते परिवेश के संग बदलते जीवन मूल्य अब हमारे अभिन्न अंग बन गये हैं ।

नरेश और हितेश काका ताऊ के भाई थे चार पीढ़ियां एक ही
परिसर एक अहाते ,एक आंगन का साझा उपयोग कर रहे थे हालांकि सबका अपना अपना हिस्सा था ।

बुजुर्गवार दोनों परिवारों के कूच कर गए थे अब बच्चे बड़े हुए नौकरी,शादी और उनके बच्चे भी वही बड़े होने लगे ,
स्वाभाविक था कम जगह की वज़ह से रोज रोज किचकिच
होने लगी वाक् युद्ध हाथापाई का रूप धारण करने लगा !

महिलाएँ हाँ ब्याहताएँ भी अपशब्द ,अशोभन शब्दों का प्रयोग करने लगी धीरे धीरे फ़िजाएँ जहरीली होने लगी !
एक वक्त ऐसा आया कि हितेश जो सीधा सादा बन्दा था ,
सरकारी मुलाजिम था दूसरा पक्ष चाहता था कि ये कुछ
दुर्व्यवहार ,गलती करें और हम वीडियो बनाकर इनके
खिलाफ़ कम्पलेन लिखवाए और यह परिवार कोर्ट,
कचहरी के चक्कर काटता ही रहे ।

विभिन्न युतियाँ जारी रही कहते हैं 'बिना अले दले के दी गई
गालियाँ उल्टे देने वाले को ही लगती है ,
नरेश को पीने की बुरी लत थी जिसके कारण वह नशे में
प्रायः धुत्त होकर अनाप शनाप बका करता था ! फलस्वरूप
उसकी सामाजिक पहचान धूमिल हो गई थी । परिवार में
पति पत्नी दोनों में अक्सर द्वन्द्व युद्ध छिड़ा रहता था !
संस्कार शून्यता की स्थिति ने परिवार को किंकर्तव्यविमूढ़
सा हो गया था !
बड़ी लड़की का ग्रेजुएशन पूर्ण हो चुका था उसके पूर्व ही उसके क़दम गलत दिशा में बढ़ चुके थे माता पिता का ध्यान
बच्चों से हट सा गया था ,लड़की ने भागकर शादी कर ली ,
सदमा नरेश सहन कर न सका अनमना बना रहने लगा
अत्यंत रोने से ऑंखें खराब हो गई फलतः आपरेशन करना पड़ा ,आँखों का पानी मरने के बाद ही उन्हें चेत हुआ और
नगर मकान छोड़ अन्यत्र चले गए ।
जहाँ एक एक इंच जमीं के लिए नित्य महाभारत रचता था
वह जमीन वह मकान वह परिवेश आज भी सूना है ,
अपनी दुर्दशा पर ऑंसू बहाते हुए ,
काश ! वक्त से पहले संभल जाते दोनो काका,ताऊ के भाई,
उनकी पत्नियाँ भी तो शायद यह प्रतिस्थापन नरेश को न
भोगना पड़ता ,नहीं विषाक्त वातावरण बना संस्कार विमुख
हो परिवार बिखरता ,शेष नन्हें बच्चों को बंजारों सा जीवन न
जीना पड़ता !
हितेश को भी मानसिक आघात से गुजरना न पड़ता ,
और पुश्तैनी मकान छोड़ अन्यत्र न बसना पड़ता !!
किसी ने कहा है बोये पेड़ बबूल के आम कहाँ से आए !
वातावरण खुशनुमा रहे ,छोटे स्वार्थ से रिश्ते न बिगाड़े ,
संस्कार जीवन की महती आवश्यकता है पग पग पर बढ़ते बच्चों को आपके प्यार ,विश्वास की आवश्यकता है अपनी संतान के लिए हीरा होकर रहना,जीओ हीरे सा जीवन !
हम सोच नहीं पाते हैं हमारे मधुर संस्कार कैसे अक्षुण्ण रहेंगे !!

प्यार बिखराओ ,अलगाव या भटकाव नहीं !
प्यार जिन्दगी है महज बहाव या बहलाव नहीं !!
प्यार पाना है तो प्यार देना भी सीखना होगा हमें,
पारदर्शिता हो जीवन में हमारे ,स्थिरता ठहराव नहीं !!

अदूरदर्शिता ,भविष्य दृष्टि का अभाव,कुसंगति ,नाहक दर्प
कटु बोली ,स्वार्थ मानव को पतन की राह पर ले जाकर छोड़ देते हैं जबकि प्रेम ,सद्व्यवहार ,सुसंस्कार से सुसृष्टि की
निर्मिति होती है !


-MaheshKumar Sharma
12/12/2022

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