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परेतकाल बिसाचकाल और डायनकाल दैवीकाल भाग२
तो चलिए जातने परेतकाल ,बिसाचकाल और दैवीकाल,डायनकाल की योनि में क्या अंतर होता है और किस परेतकाल बिसाचकाल और डायनकाल की योनि एक दूसरे से अलग अलग है इस दरसारे के हमे इस्त्री की योनि के वीर्य का आवाहन करना होगा क्योंकि उस जल से स्त्री के भोग की कुछ हत कल्पना करके यह पता लगाया जा सकता है कि कौन सी इन अलग-अलग स्त्री से कौन सा काल जन्मा है।। स्त्री के प्रकार -सरवगुडसमपनन ,असुध,मलीन, प्रेम हीन, वसनामुगध,मोहमाया, वसनाम ई,कलेश, कुविचार, समर्पित, क्रमबद्ध, वचनबद्ध,सगकलपइत,मायाबद, संन्यास पूर्ण, कर्म पथ ।। स्त्री जात एक ही होकर अलग अलग है क्यों ।।
स्त्री जात अलग-अलग हैं मगर योनि एक और मार्ग एक है।।- कर्म भोग का फल विचार काल द्वारा प्रभावित हो जाता है।।
स्त्री के कालचक्र और विचारकाल वीर्य द्वारा अलग-अलग भोग की प्राप्ति होती है।। जैसे कोन सी देवी से कौन सा भोग लगाया गया था।। एक स्त्री के प्रकार और कालचक्र को जानने के हमे स्त्रीकाल को जनना होगा जिसमें इस्त्री के विचारकाल, स्त्रीकाल से स्त्री के भोग काल और इस्त्री के प्रकार द्वारा निर्मित से सहायता प्राप्त है।।
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