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"दादी की डायरी"
नंदिनी और उसकी दोनों बहनों ने अपनी अपनी परिक्षाएं अच्छे नंबरों से उत्तीर्ण की थी,तीनों ने क्रमशः छठवी,सातवीं,और आठवीं की परिक्षाएं उत्तीर्ण की थी,इनमें नंदिनी सबसे छोटी थी,तीनों ही बहनों को अपनी दादी से बेहद स्नेह था,उनके पिताजी तारानाथ बनर्जी काम के सिलसिले में हैदराबाद आकर बस गयें थें,तारानाथ तो अपनी माँ को भी अपने साथ हैदराबाद लाना चाहते थे,मगर वो अपने पैतृक घर को छोड़कर कहीं नहीं जाना चाहतीं थी,उनका कहना था कि सारी उमर इस घर में गुजार दी अब कहाँ जाना....
इसलिए तारानाथ अकेले ही अपनी पत्नी वैशाली के साथ हैदराबाद आकर रहने लगा,तीनों पुत्रियों का जन्म भी यही हुआ था ।
तब से हर त्योहार वो अपने माता पिता के साथ मनाने लगा,धीरे-धीरे काम की व्यवस्ता और बच्चों की पढ़ाई के चलते वे साल में एक बार ही मां और पिताजी के साथ बिताने जाने लगे,इसी बीच पिताजी का निधन हो गया था,तब तारानाथ ने बहुत कोशिश की कि अब माँ उनके साथ रहें परन्तु माँ अपनी यादों के साथ ही जीना चाहती थी,तो तारानाथ ने भी अब बोलना छोड़ दिया था।
अब तीनों बहनें दादी के यहाँ जाने के लिए अति उत्साहित थीं,दादी नैनीताल में रहतीं थीं उनका घर और वहाँ का माहौल सबको बहुत पसंद था खैर नियत समय पर सब नैनीताल जाने के लिए रवाना हो गये और अगले दिन वो दादी के घर पर थें।
दादी ने सबके लिए उनके मनपसंद पकवान बनाये थे, खासतौर से तारानाथ के लिए भरवा करेला और नंदिनी के लिए आम की चटनी,सबने खूब चाव से भोजन खाया,और खाना खाकर सब अपने अपने कमरे में सोने चले गए केवल नंदिनी और तारानाथ दादी के पास रूक गऐ,और उनसे बातें करने लगे कुछ देर बाद तारानाथ ने मां को कुछ साड़ियां और कुछ जरूरत के सामान लाकर दिए और कुछ पैसे भी दे दिए।
कुछ देर बाद वो भी अपने कमरे में सोने चले गए और नंदिनी दादी के कमरे में उनके साथ सो गई वो जितने दिन वहाँ रहीं दादी के करीब ही रहा करती, कभी दादी उसके बालों में तेल लगा देती कभी वो दादी के पांव दबा दिया करतीं कभी दादी उसे छेड़ती कभी वो दादी के संग छुपन छुपाई खेलती,एक दिन रात को दोनों लेटी थीं तो नंदिनी ने पूछा दादी इस बक्से में क्या है? आप इसमें क्या रखतीं हो, दादी मुस्कुरा कर बोली अपने कुछ कीमती सामान तभी नंदिनी बोली दादी मुझे दिखाओगी वो सामान, दादी बोली नहीं बेटा अभी तुम बहुत छोटी हो दो तीन साल बाद मै तुम्हें कुछ दिखाऊँगी और बोलूंगी भी नंदिनी मान गई।
देखते ही देखते दिन गुज़र गए और उनके जाने का दिन भी आ गया माँ ने सारा सामान पैक कर लिया और दादी के पांव छूकर बोलीं "माँ देखती हूँ आप नंदिनी को बहुत चाहतीं है आप एक बार हैदराबाद आईए और नंदिनी के साथ वहाँ भी इसी तरह रहिये, दादी हंसकर बोलीं कोशिश करूँगी,और सभी दादी के पांव छूकर उनसे विदा लेकर चल पड़े
दिन बीतते रहे और इस बीच छ साल गुजर गए इस बीच नंदिनी अपनी पढ़ाई को लेकर काफी व्यस्त हो गई थी और अब वो कम ही दादी के पास जा पातीं थी बस फोन पर ही कभी कभार उनसे बातें हो जाया करती थी।
और एक दिन वो गया जिसके होने की किसी ने उम्मीद न की थी,दादी के एक पड़ोसी ने फोन पर सूचना दी कि हृदयँघात के कारण दादी की हृदयँ गति रूक गई थी और उनकी मृत्यु हो गई थी।
सभी पर मानों वज्रपात गिर पड़ा आनन फानन में सब नैनीताल चल पड़े,नंदिनी और तारानाथ का तो रो रो कर बुरा हाल था,खैर भारी मन से सबने दादी का अंतिम संस्कार किया और सबने १३ वी तक यही रूकने का निर्णय लिया।
एक दिन दादी के नौकर रामू ने दादी का एक खत तारानाथ को दिया वो खत खोलकर पढ़ने लगे उसमें दादी ने अपनी समस्त संपत्ति तारानाथ और उनके परिवार के नाम करने की बात कही थी और वसीयत कहाँ पर रखी है ये भी लिखा था दूसरा अपने कमरे में रखे बक्से को नंदिनी को देने को कहाँ था माँ का खत पढ़ कर तारानाथ की आंखों में आसूं आ गए।
सबने दादी के कमरे में रखी अलमारी को खोला तो उसमें उनकों वसियत मिल गई। नंदिनी को दादी का बक्सा मिल गया।
माँ की तेरहवीं के बाद तारानाथ अपने परिवार समेत हैदराबाद वापस चले आए,इधर एक दिन रात को नंदिनी को ख्याल आया उस बक्से की तो उसनें वो बक्सा खोला,उसमें दादी के कुछ जेवरात और कुछ तस्वीरें थीं,नंदिनी ने देखा कि दादी अपनी युवावस्था में बेहद खूबसूरत थीं और दादाजी भी बेहद हैडसम थें।
उसी बक्से में नंदिनी को दादी की एक डायरी मिलीं नंदिनी ने उत्सुकता वश उसे खोला तो देखा उसमें आज से ५० साल पहले की दिनांक थी नंदिनी ने पढ़ना आरम्भ किया.... आज कालेज का पहला दिन था मेरी कुछ दोस्त भी बन गई नीलू और रागिनी दोनों ही बहुत अच्छी है, आज कालेज का दूसरा दिन था आज मुझे अपने कक्षा में एक युवक दिखा उसका नाम साहिल है अपने नाम के अनुरूप उसकी समुन्दर सी गहरी आंखें हैं...... आज कालेज का पांचवा दिन, आज कालेज का १६ दिन नंदिनी पढ़ती रहीं, आज एक माह हो गया मुझे इस कालेज में आए हुए,मगर अब तक मै साहिल से कुछ भी कहने की हिम्मत न जुटा सकी हूँ.........
आज कालेज का दूसरा साल है हम और साहिल एक दूसरे से बेपनाह मोहब्बत करने लगे है........
आज मुझसे वो हो गया जो होना न था मगर मै क्या करतीं साहिल ने जब मेरे करीब आकर मेरे जुल्फों को संवारा तो उसकी गर्म सांसों से मै पिघल गयीं और लता सी उससे लिपट गई और जब उसने अपने होठ मेरे होठों पर रखा तो जैसे मै खुद को ही भुला बैठीं हम दोनों ही एक दूसरे में खो गए और होश तो तब आया जब आंधी गुजर चुकीं थी।
........ आज कालेज का आखिरी दिन था मै साहिल से लिपटकर खूब रोईं,न जाने हम फिर कब मिले ।
....... एक साल गुजर गया मुझे कालेज उत्तीर्ण हुए मेरे घर वाले मेरी विवाह की तैयारियां कर रहे है और मैं बेबस सी बस अपनी भाग्य पर हंस रही हूँ।
आज मेरा विवाह है मुझे साहिल बहुत याद आ रहा है लेकिन शायद मेरी तरह वो भी कायर निकला और अपने घर वालो को कुछ भी नहीं बताया होगा।
अंत में डायरी के मध्य में उसे दादी का एक खत मिला जो पिछले साल ही दादी ने लिखी थी क्योंकि उसमें दिनांक भी लिखा था खत में लिखा था ये रहस्य मैंने आज तक किसी को नहीं बताया तुम्हारे दादाजी भी कभी नहीं जान पाएं कि विवाह पूर्व मेरा किसी से कोई संबंध था मै अपनी ये डायरी तुम्हें दे रहीं हू इसे पढ़ कर जला देना,आगे खत में लिखा था कि यदि किसी से प्यार करो तो विवाह पूर्व अपनी इज़्ज़त को संभाले रखना क्योकि यदि ये पूंजी तुमसे छिन गई तो बेशक दुनियाँ वालों से तुम छुपाकर रखों मगर तुम्हारा अंतरमन हमेशा तुम्हें इसकी याद दिलाता रहेगा और तुम कभी भी सयंत नहो पाओगी।
नंदिनी ने डायरी पढ़कर सोचा सच में दादी शायद अपने अंतिम समय तक अपने प्रथम प्रेम को भुला न सकी थी और जो कुछ दादी ने उससे कहा था उसमें गलत भी तो कुछ नहीं था।
© Deepa