...

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कौन हूँ मैं
बस एक ही प्रश्न आज मेरे आत्मा को झंझकोर रहा है
की कौन हूं मैं...
क्या करने के लिए धरती पर जन्म लिया, केवल दुखों का भार उठाने के लिए गैरों के संरक्षण में अपने अस्तित्व को गवा देने के लिए और यदि मैं ऐसे ही जीवन के लिए जन्मा हूं तो फिर मुझे यह स्वीकार क्यों नहीं है,
इस संसार में मेरा स्थान कहां है कहां हूं मैं, मेरा रोता हुआ आत्मा मेरे पास बैठ कर मुझसे पूछ रहा, क्या मेरा अपने ही शरीर पर कोई अधिकार नहीं, और अधिकार नहीं है तो क्यों नहीं है, और यदि है तो कहां है, क्या मर्जी है ईश्वर के मुझे बनाने को, क्या सोचकर उन्होंने मुझे बनाया,
सुख के सागर के पीछे गमों...