...

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अचल अटल अमिट विवाह
जब लगि गंग जमन जलधारा
अचल होइ अहिवात तुम्हारा
यह आशीर्वाद मां पार्वती ने सीता जी को दिया था । गौरी - शंकर भगवान अनंत काल से पति पत्नी के रूप में हमारी संस्कृति,
आस्था के प्राण हैं। शिवरात्रि का वर्णन हमारे धर्म ग्रंथों और पुराणों में वर्णित है। कहा जाता है कि इस दिन शिव जी का प्रादुरभाव हुआ था यह भी मान्यता है कि इस दिन शिव -पार्वती का विवाह हुआ था और यही लोक प्रचलित भी है।
पार्वती जी पूर्व जन्म में सती थीं,राजा दक्ष की पुत्री। एक बार राजा दक्ष ने यज्ञ का आयोजन किया यज्ञ में राजा दक्ष ने सभी को निमंत्रण दिया लेकिन शंकर जी को आमंत्रित नहीं किया। क्योंकि सती ने अपने पिता की इच्छा के विरुद्ध शिवजी से विवाह किया था। पिता के घर यज्ञ का आयोजन है, यह पता चलने पर सती ने यज्ञ में जाने की इच्छा व्यक्त की। शंकर जी ने यह कहकर जाने से मना कर दिया कि हमें निमंत्रण नहीं मिला है
शंकर जी के लाख समझाने पर भी सति नहीं मानी और अकेले ही यज्ञ में चलीं गईं। वहां जाकर उन्होंने देखा कि वहां सबका भाग है और आसन भी रखें हैं। उन्होंने देखा कि यज्ञ में न तो शंकर जी का भाग ही निश्चित है और न ही कोई आसन रखा है।
यह देखकर वह बहुत क्रोधित हुईं और उसी यज्ञवेदी में योगाग्नि द्वारा जल कर भस्म हो गई।
सति ने ही पर्वत राज हिमाचल और मैंना के घर पार्वती जी के रूप में जन्म लिया।इस जन्म में भी उन्होंने महादेव को ही अपना वर चुना।इस जन्म में उन्हें महादेव को प्राप्त करने हेतु कठिन तम तपस्या करनी पड़ी। क्योंकि सति वियोग में महादेव तो वितरागी और समाधिस्थ हो गये थे। लेकिन अपनी कठिनतम तपस्या एकनिष्ठ आलोकिक प्रेम सम्पूर्ण समर्पण भावना के बल पर महादेव को गृहस्थ बनाने में सुसफल हुईं।
आज से लाखों करोड़ों वर्ष पूर्व यही फाल्गुन मास था,यही त्रयोदशी तिथि जब शंकर - पार्वती जी का अचल, अटल अमिट विवाह हुआ था।

© सरिता अग्रवाल