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अधूरा हमसफ़र
कविता की बात हुए अमर से सालों गुजर गए थे और अजीब सी कशमकश से भरी कविता यही सोच बेचैन थी कि वो कहां है, कैसा है और किस हाल में है। अब वक़्त भी पहले जैसा नहीं था और जज़्बात भी...