...

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अधूरा हमसफ़र
कविता की बात हुए अमर से सालों गुजर गए थे और अजीब सी कशमकश से भरी कविता यही सोच बेचैन थी कि वो कहां है, कैसा है और किस हाल में है। अब वक़्त भी पहले जैसा नहीं था और जज़्बात भी वक़्त के साथ करवटें ले रहा था।
कविता का दिलो-दिमाग अमर के ख़्यालों से हट नहीं रहा था। ज़िंदगी की कहानी के पन्ने दोनों तरफ़ पलट रहे थे। उधर अमर भी सब कुछ भूला ख़ुद अपनी मंज़िल तलाश रहा था। सालों गुजर गए और वक़्त दर वक़्त अमर भी बदलता चला गया। हालांकि, हालात और जज़्बात से अमर आज़ भी ख़ुद को कमजोर समझता था।

उसकी घबराहट, उसकी बेचैनी और उससे बात करने की तलब अमर से आख़िर क्यों थी?
आख़िर क्यों कविता ने अमर को इतने सालों बाद याद किया?
कड़कड़ाती ठंड में अकेले छत पर कविता आखि़र अमर के बारे में क्या सोच रही थी?

© Aashu_ The Poet