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मदद के अनेक प्रकार
वो कोई बदमाश या चोर उच्चका देखने से तो नहीं लग रहें थे। सुंदर नाक नक्श सुडोल चेहरा,गोरा रंग काले घने बाल और सुंदर पोशाक..!! मगर अजनबियों से थोड़ा डर तो लगता ही है।।
कल जब मैं सबेरे सैर से घर लौट रही थी तो मंदिर के पास सड़क किनारे मैंने एक बुढ़ी अम्मा को ठेले पर रसोई में काम आने वाली सामान जैसे तेजपत्ता, दालचीनी वगैरह वगैरह बेचते हुए देखा तो मुझ से रहा नहीं गया और मेरे क़दम उस ठेले की तरफ़ अपने आप ही चल पड़े।मैं उनकी मदद करना चाहती थी। इसी उद्देश्य से मैंने ठेले से कुछ पैकेट उठाया जिसके मुश्किल से 70....80 रुपये होंगे...! फिर अगले ही पल मुझे ख़्याल आया क्यों ना मैं यहां से कुछ और पैकेट खरीद लूं जिससे बुढ़ी अम्मा की थोड़ी सी मदद हो जाएगी..?? और मैंने बहुत सा पैकेट वहां से उठा लिया...!!वहां मुझ से पहले कुछ सज्जन आए सामान को हाथ में उठाया उलट पलट कर देखा दाम पुछा और फिर सामान वापस रख कर चलें गये।यह देख कर मुझे थोड़ा अजीब लगा। फिर मैंने पुछा अम्मा कितने का पैकेट है।तो उन्होंने हाथों के इशारे से बताया 20 का एक । फिर मन में एक ख्याल आया।ये बुढ़ी अम्मा इस उम्र में अपना पेट पालने के लिए मेहनत कर रही है।
तो अगर मैं इन्हें कुछ पैसे ऐसे ही दूंगी तो शायद इनके सम्मान को ठेस पहूचे और हो सकता है ये पैसे लेने से इंकार भी कर दें।
यही सब सोच कर मैंने कुछ और पैकेट वहां से उठा लिया और अम्मा से पुछा कितने पैसे हुए अम्मा उन्होंने फिर मुझे इशारों में बताया 200...!! जैसे ही मैं पैसे देने लगी मैंने महसूस किया कि एक सज्जन जो कि मेरे बगल में ही खड़े थे । बहुत देर से लगातार मुझे घुरे जा रहें थे। मुझे ऐसा लग रहा था जैसे कि वो मुझ से पुछना चाह रहे हो कि देखने में तो आप अच्छी भली घर की लग रही हो फिर आप यहां से सामान क्यों खरीद रही हो...??
मैंने उन्हीं की भाषा में उनको समझानें का प्रयास किया।
और नजरों ही नज़रों में कहा मदद के अनेक प्रकार हैं।आप जो चाहे चुने...!!
फिर मैंने अम्मा को पैसे दिए और अपना सामान लेकर वहां से निकल पड़ी ।
किरण