जिंदगी दी है
पीर पहाड़ों सी झेलता है कोई
तो अचंभा कैसा।
कुदरत ने मौत को ही तो जिंदगी दी है।
तो अचंभा कैसा।
कुदरत ने मौत को ही तो जिंदगी दी है।
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