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कृष्ण कमल "सत्रहवाँ श्रृँगार" .. भाग - २
इस कहानी की पिछले संभाग में श्री ने "कृष्ण कमल " की महिमा से अनभिज्ञता प्रकट करते हुए बोलती है कि प्रिय मंगल इसके बारे में मुझे विस्तार पूर्वक बताएं....अब आगे.....

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मंगल कृष्ण कमल का वृतांत बताते हुए कहता है कि हे श्री सुनो..

यह " कृष्ण कमल " पुष्प तो महाभारत को अपने में समाहित किए हुए हैं.. जिसमें इसकी सफेद सौ पंखुड़ियाँ कौरवों को दर्शाती है...

उसके ऊपर की पाँच पंखुड़ियाँ..... पाँच पांडवों को , उसके ऊपर गोलाकार संरचना द्रोपति को दर्शाती है ठीक उसके ऊपर की तीन पंखुडियाँ ब्रह्मा, विष्णु और महेश को दर्शाती है....

बीच में गोलाकार संरचना जो बना है वह सुदर्शन चक्र है उसके बीच स्वरूप में हमारे माधव श्री कृष्ण जी विराजमान हैं....

आदिकाल से ही इसकी धीमी भीनी खुशबू तन मन और हृदय को प्रसन्नचित कर, वातावरण को नकारात्मकता से मुक्त कर देती है....

यह " कृष्ण कमल" हमारे माधव, काशी के नाथ और अक्कलकोट के स्वामी को अति प्रिय है श्री.....

अब श्री पुनः मंगल से इस पुष्प को काशी नाथ और अक्कलकोट के स्वामी के श्री चरणों में समर्पित करने की बात करती है.....💮

मंगल श्री से पूछता है कि श्री तब तुम्हारे सत्रहवाँ श्रृँगार का क्या होगा...?

श्री मंगल से कहती है कि हे मंगल आपने मुझे संकेतों में ही इस "कृष्ण कमल " पुष्प के माध्यम से समझा दिया है कि असल में सुखी जीवन का सत्रहवाँ श्रृँगार क्या है... अब उसे ही मैं धारण करूँगी...

मंगल पूछता है श्री से अर्थात्

श्री कहती है कि जिस प्रकार से अनंत काल से ही योग और अदृयात्म से कमल के फूल को एक प्रतीक के रूप से देखा जाता रहा है । ऋषि-मुनियों ने भी बताया है कि यदि कमल के गुणों को अपने जीवन में उतार लो तो तुम कमल पुष्प भाँति इस दुनिया मे खिल सकते हो। इस नश्वर शरीर के सात मूल चक्रों के लिए कमल के सात चक्र ही पर्याप्त है।

श्री बोलती है कि जिस प्रकार कमल कीचड़ और दलदल में रहकर अपनी प्रसिद्धि को जग जाहिर करता है! ठीक उसी प्रकार मनुष्य के जीवन में भी कुछ ऐसे ही उतार-चढ़ाव आते हैं।

मनुष्य दुनिया मे जहाँ कहीं भी जाता है उसे सामजिक बुराई, मानसिक गंदगी, परबुराई, कुभाषा और निंदा नामक बुराई अवश्य देखने को मिलती है।

चाहे मनुष्य अपने मन को हीं क्यों न झांककर देखे, वहाँ भी उसे यहीं गंदगी दिखाई देगी, लेकिन जो मनुष्य इस गंदगी के बावजूद अपने हृदय मन में और अपने आस-पास कमल पुष्प उगा लेता है तो वह उस गंदगी में भी सुख का अनुभव करता है और अपने और समाज के लिए सफलता का मार्ग प्रशस्त करता है।

मंगल श्री की मुख मंडल पर एक अलग तेज देखकर बहुत ही प्रसन्न होता है और 'श्री' को श्री काशी विश्वनाथ और श्री अक्कलकोट के स्वामी धाम में "श्वेत कृष्ण कमल "पुष्प संग ले जाने की बात कह कर श्री को अपने हृदय से लगा लेता है.....

श्री की आँखें नम हो जाती है और मंगल से कहती है कि यदि मनुष्य अपने जीवन में कमल पुष्प के गुणों को धारण कर ले जो सारे श्रृँगार से सर्वोच्च श्रृँगार के रूप में है....बिना इस श्रृँगार के जीवन के सारे श्रृँगार व्यर्थ है ..💮

श्री मंगल के आँखों में देखते हुए कहती है कि मंगल अब मेरे लिए तो कमल पुष्प के गुणों को अपने जीवन में धारण करना ही सत्रहवाँ श्रृँगार है...

मंगल मुस्कुराता है और श्री को पुनः अपने हृदय से लगा लेता है....

श्री बोलती है मंगल से कि मुझे वह कृष्ण कमल पुष्प प्रभु के श्री चरणों में भेंट करने के लिए चाहिए ....कि कब आप "कृष्ण कमल पुष्प" मुझे दोगे और हम दोनों कब धाम पहुँचे.....?
उस पल का मुझे बेसब्री से इंतज़ार है .....

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मन:काल्पनिक आधारित मिश्रित कहानी....
कहानी का अगला भाग इंतज़ार की अगली कड़ी में.....💮💮
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