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होली
भव्या की ससुराल में पहली होली थी मग़र उसके चेहरे पर ना तो त्यौहार वाली रौनक थी और ना ही खुशी बल्कि वह तो एकदम डरी सहमी सी लग रही थी। ज़रा सी शोर शराबे से पर चौक पड़ती थी।हर दम खिला खिला सा रहने वाला चेहरा आज गुमसुम और उदास पड़ा था।
पर उसकी इस उदासी का कारण किसी को समझ नहीं आ रहा था। इंदु ने कयी बार भव्या से पुछा बहू क्या बात है...?आज तुम इतनी खोई खोई और उदास क्यों हो..??
क्या मायके की याद आ रही है..??
जिस पर भव्या ने कहा नहीं मां जी ऐसी कोई बात नहीं है।जिसके पास आप जैसी सास हो उसे मायके की भला क्या जरूरत..?? तो फिर क्या हुआ...? सचिन ने कुछ कहा क्या..?? आज आने दो उसे कान खींच कर दो चमेट लगाती हूं।मेरी बहू को परेशान करता है।
नहीं नहीं मां जी उन्होंने भी मुझे कुछ नहीं कहा है।
भव्या ने मुस्कुराने का प्रयास करते हुए कहा..!
जिस पर इंदु चिंता जताते हुए बोली बहू बताओ तो सही आखिर बात क्या है....?? मुझे तुम्हारी चिंता हो रही है।
दरअसल मां जी मुझे होली के नाम से ही बहुत डर लगता है।पर ऐसा क्यों बच्ची..?होली तो हंसी खुशी प्रेम दुलार सम्मान और रंगों का त्योहार है।वैर और ईर्ष्या को भुला कर एक दूसरे को गले लगाने और प्यार जताने का त्यौहार है।
जी मां जी ...!
मैं बचपन से ऐसी नहीं थी ।मुझे भी आम बच्चों की तरह ही होली का त्यौहार अत्यधिक प्रिय था। धमा चौकड़ी करना खाना और रंग गुलाल लगाना और लगवाना दोनों ही बहुत पसंद था। मग़र फिर एक होली ऐसी आई की हमारे जीवन की सारी रंग अपने साथ ले गयी।
इंदु ने कंपकंपाते स्वर में पूछा ऐसा क्या हुआ बेटा..?
जिस पर भव्या अपने सास के गले लग फफक पड़ी...!!
इंदु ने भव्या को पुचकार कर हिम्मत देते कहा कोई नहीं तुम अपने मन की बात आज इन आंसुओं में बह जाने दो
तुम्हें अच्छा लगेगा..!!
फिर भव्या खो गई अतीत की उन यादों में जिसे वो कभी याद नहीं करना चाहती है। मग़र वो उसे भूल भी तो नहीं पा रही हैं। आज से लगभग 11 साल पहले की बात है।
उस दिन भी आज ही की तरह होली का त्यौहार था सभी लोग बहुत खुश और उत्साहित थे। होली खेलने के लिए घर में तरह-तरह के पकवान बनाए गए थे और बना रहे थे एक तरफ मछली तो दूसरी तरफ कुकर में मीट पक रहे थे। मालपुआ खीर और दही बड़े की खुशबू से सारा घर आंगन महक रहा था। सप्ताह डोरा का प्रसाद भी पड़ोसी के घर भेज दिया गया था उनके यहां ही पूजा और कथा होती थी। प्लेटो में रंग-बिरंगे गुलाल भी रखें गये थे। मेरी कुछ सहेलियां भी दुसरे मुहल्ले से आई थी गुलाल लगाने हम लोगों ने एक दूसरे को खूब गुलाल लगाया। फिर साथ में खाना खाया और फिर वो लोग अपने अपने घर चली गई। घर में भी सब ने खूब खाया पिया और एक दूसरे को गुलाल लगाया। धीरे-धीरे दिन ढलने लगा था मंदिर पर नवाह समाप्त हो चुका था और जुलूस आने का समय हो चला था। कीर्तन मंडली पड़ोस वाली चाची के दलान से होते हुए हमारे दलान की तरफ आ रही थी। जब भजन मंडली हमारे दलान पर आई तब दादी ने गुलाल से भगवान जी का स्वागत किया और पापा जी चढ़ावन के लिए कुछ पैसे भी रखें थे। जो उन्होंने भजन मंडली को देते हुए होली की बधाइयां दी। उसी मंडली में पापा के एक दोस्त थे जिन्होंने पापा को अपने साथ चलने का आग्रह किया। त्यौहार का दिन था तो पापा उसे मना नहीं कर पाए और उनके साथ हो लिए। वैसे आज त्यौहार के दिन पापा सुबह से घर पर ही थे कहीं भी बाहर नहीं गए थे। दिन के 4:00 से रात के 8:00 गए सभी लोग अपने-अपने घर वापस आ गए थे। यहां तक की भजन मंडली वाले भी जुलूस समाप्त करके वापस अपने-अपने घर जा चुके थे। पर पापा अभी तक घर नहीं लौटे थे।
दादाजी बार-बार पूछ रहे थे रमेश अभी तक आया क्यों नहीं..? अभी तक तो मुझे आ जाना चाहिए था..??
उसके दोस्त अच्छे नहीं है..? मुझे चिंता हो रही है उसकी..! और उन्होंने चाचा जी से कहा सुरेश तुम जाकर देखो ना वह कहां रह गया..??बहुत रात हो गई है अभी तक आया क्यों नहीं...?? चाचा जी बोले भैया आ जाएंगे इतना चिंता क्यों करते हैं ।वो बच्चा थोड़ी ना है और उनकी तो देर से आने की आदत है। उन दिनों इलेक्शन का समय था। गांव का माहौल भी ठीक नहीं था। पापा जी का नेताओं के साथ उठना बैठना था जिस वजह से गांव में उनके दोस्त कम और दुश्मन ज्यादा हो गए थे।
जैसे-जैसे समय बीत रहा था हमारी धड़कनें भी तेज हो रही थी। फिर जब बहुत देर हो गई तब चाचा जी अपने एक दोस्त को साथ लेकर गांव के मंदिर और चौराहे तक पापा को ढूंढते हुए गए। मगर उन्हें पापा नहीं मिले और वह वापस घर आ गए। घर में बच्चों से लेकर बड़ों तक की चिंताएं और भी बढ़ गई। उनके लौटने की प्रतिष्ठा और चिंता के हम और कुछ कर भी नहीं पा रहे थे। रात गहराती जा रही थी। और अब मां की सब्र का बांध भी टूटने लगा था। वह फफक-फफक कर रोने लगी थी।
इधर दादा जी की बेचैनी भी बढ़ती ही जा रही थी।
इतने में ही एक आवाज ने हम सभी का ध्यान अपनी तरफ किया। सड़क से कोई चाचा जी का नाम लेकर बार-बार चिल्ला रहे थे।सुरेश...सुरेश जल्दी से जल्दी से इधर आओ देखो यह क्या हो गया...?? भाग कर चाचा जी आगे और हम सभी उनके पीछे सड़क की तरफ लपके । उस अजनबी के कंधे पर बेसुध हाल में पड़े मेरे पापा जी थे । धोती फटी हुई कुर्ता फटा हुआ नशे में धुत्त
बार-बार किसी का नाम लेकर गालियां दिए जा रहे थे।
नशे की हालत में ही बोल रहे थे मैं उसे नहीं छोडूंगा उसने मुझे जबरदस्ती शराब पिलाया..! मैं जब भी उससे पानी मांगता वो मुझे गिलास भर भर कर शराब दे रहा था।
पापा की हालत देखकर हम बच्चे बहुत डर गए थे।
हम क्या आज से पहले कभी हमने दादाजी को इतना परेशान और पापा के लिए चिंता करते हुए नहीं देखा था।
जल्दी-जल्दी फिर पकड़ कर पापा को घर ले आए और फिर चाचा भाग कर डॉक्टर को बुला लाए । पापा इतना जोर-जोर से चिल्ला रहे थे कि सारे मोहल्ले वाले उनकी आवाज सुनकर इकट्ठे हो गए थे। यूं तो पापा ने कभी किसी से ऊंची आवाज में बात तक नहीं की थी मगर आज सभी को उल्टा सीधा बोल रहे थे गालियां बक रहे थे वो होश में जो नहीं थे। डॉक्टर ने ठंडे पानी से नहाने की और नींबु पानी थोड़ी थोड़ी देर में पिलाने की सलाह दी और अपने घर लौट गए। उनके कहे अनुसार ही कार्य किया गया किंतु नशा इतना ज्यादा था कि वह होश में आ ही नहीं रहे थे। वो रात हमारे लिए किसी काली रात से कम ना थी। पापा बार-बार उठने की कोशिश करते पर
नशे की वजह से गिर जाते। उन्हें संभालना घर के लोगों के लिए ही नहीं बल्कि मोहल्ले भर के लोगों के लिए भी मुश्किल हो रहा था। न जाने मां और दादी ने उस रात पापा की सलामती के लिए कितनी मन्नतें मांगी होगी।
ना तो पापा को नींद आ रही थी और ना ही वह होश में आ रहे थे। चढ़ते रात के साथ ही मुश्किलें भी बढ़ रही थी। मग़र वो कहते हैं ना की मुश्किलें चाहे कितनी ही क्यों ना आए मग़र अच्छे लोगों के साथ हमेशा अच्छा ही होता है। पापा को भी बड़ी मुश्किलों से दादा जी ने डांट डपट कर सुलाने की कोशिश करने लगे तब पापा उनके हाथ पकड़ कर जोर-जोर से रोने लगे। उनको रोते हुए देख कर सभी लोग रोने लगे। फिर अचानक पापा बोलने लगे मुझे कुछ नहीं हुआ है मैं ठीक हूं आप मत रोइए...!!
तब दादा जी ने उनसे कहा ठीक है मैं नहीं रोता हूं ।अब तुम सो जाओ बहुत रात हो गई है। फिर पापा ने कहा अच्छा मैं सो जाता हूं आप यही रुकना और फिर धीरे-धीरे पापा नींद की आगोश में समाने लगे। बड़ी मुश्किलों से हमारी वो रात बीती..!!अगले दिन सुबह के लगभग 10:00 बजे पापा जी नींद से जागे अभी भी नशे का असर था ही मगर पहले से अब थोड़ा बेहतर लग रहे थे।
सुबह फिर से मोहल्ले वाले इकट्ठा हो गए और सब ने पूछा उनसे कि यह सब कैसे हुआ तुम तो शराब पीते नहीं हो फिर यह सब कैसे....??तब पापा ने अपनी लड़खड़ाती जुबान से पहले तो सबसे माफ़ी मांगी और बताया मैं जिसके साथ गया था जुलुस में उसी ने मुझे चार पांच लोग मिलकर जबरन शराब पिला दिया। मुझे प्यास लगी थी मैंने उस से पानी देने को कहा मगर उसने पानी बोल कर मुझे अलग अलग ब्रांड का शराब पिलाता रहा।
वो सब आपस मे बोल रहा था ऐसे में अगर इसकी जान चली जाती है तो किसी को कोई शक भी नहीं होगा।
और बाद में जब मैं पूरी तरह से अपना होश खो चुका था।तब मुझे पोखर के किनारे पर यह कहते हुए फेंक दिया की ना तो अब इसके बचने की कोई उम्मीद है और ना ही हमारे फसने की..!!उन पांचों ने मिल कर मुझे बहुत मारा भी..!उनकी बातें सुन कर सब लोगों के आंखों से आंसु बहने लगे।जिनकी एक आवाज से पुरा मुहल्ला शांत हो जाते थे।उनकी यह दशा देख सभी विचलित हो उठे थे।क्यों कि पापा को सभी लोग बहुत मानते थे और पापा भी उन पे जान छिड़कते थे। धीरे-धीरे पापा तो ठीक हो गये
मगर उन्होंने एक क़सम ली कि चाहे कुछ भी हो जाए होली के दिन वो किसी के भी साथ बाहर नहीं जाएंगे।
और तब से लेकर अब तक होली के दिन हम सभी भय के साए में ही जीते हैं। और उस दिन के बाद पापा होली के दिन कहीं बाहर नहीं जाते हैं।हम सभी लोग उनके आसपास ही रहते हैं।आज के दिन हम उन्हें एक पल के लिए भी अकेला नहीं छोड़ते हैं। इतने सालों बाद भी हम उस हादसे को भूल नहीं पाए हैं। इंदु ने गहरी सांस लेते हुए कहा अब तो सब ठीक है।तुम घबराओ मत तुम्हारे पापा को कुछ नहीं होगा। और होली खुशियों का त्योहार है।उदासियोंं का नहीं तो अपने आंसु पोंछ लो और ख़ुशी मनाओ कि अब सब ठीक है। और जाकर थोड़ा गुलाल भी तो लगा लो...! सचिन तुम्हारा इंतज़ार कर रहा होगा..!!
किरण