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संभोग मनुष्य से ब्रह्म की यात्रा
भैतिक स्थूल देह के अस्तित्व रक्षा हेतु जीव मात्र में दो मुख्य कामना सृजित होती है। प्रथम यह कि वो अमर हो जाये कभी मृत्यु को प्राप्त न करे ताकि अपने जीवन के सिख को उपयोग कर नित नए आयाम को प्राप्त करता रहे। द्वितीय भाव यह कि अमरता के दूसरे आयाम यथा निरंतरता को प्राप्त करे । भैतिक देह में अमरत्व तो संभव नही क्योंकि इसकी संरचना में जो वस्तु लगी है वो यहां की है भाड़े की वस्तु उसे तो लौटना हीं है उसका एक समय निर्धारित है तो दूसरा तरीका का निरंतरता प्राप्त करना। निरंतरता प्राप्त करने से मतलब यह है कि आप की भावनाओ को पुष्पित और नए आयाम में पल्लवित होने का और मौका दिलवाना।
मनुष्य अपनी देह यात्रा ज्ञान अर्जन से शुरू करता है और उस ज्ञान से मिली क्षमता के आधार पर उस भैतिक दुनिया से अपने हिस्से का विषय भोग कर इस शरीर व मन को तृप्त करने की यात्रा करता है। जब मनुष्य अपने इस देह हेतु संसाधन जुटाता है तो वह अवस्था भोग है। यह प्राप्ति आप के कर्मों के अधीन है। तो किसी को खुशी आनंद माधुर्य प्राप्त होता है तो किसी को दुख,...