सिगरेट
ठण्ड कि वो रात, मैं बंद डिब्बे के अन्दर आराम कर रहा था. मैं ख़ुश था कि चलो शायद एक और रात जीने को मिल हि गया और नींद से सोने का कोशिश करने लगा ख़ामोशी इतनी थी कि उसी टेबल पर रखी कलाई घड़ी कि टिक टिक करके सांस लेने कि आवाज़ मेरे कान तक पहुंच रही थी.जैसे वो चीख चीख कर कह रही हो कि आज कि रात ही तुम्हारी आखरी हैं. मेरे मन मे चल रही खुशी को शायद उसकी नज़र भी लग गयी. इस असमंजस से बाहर निकलता ही कि उसने डिब्बे का मुँह खोला और मैं समझ गया कि सोने का नहीं बल्कि...