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दो सड़कें
शहर के बीचों-बीच एक चौड़ा राजमार्ग था, जो हमेशा गाड़ियों की दौड़ और रोशनी की चमक से भरा रहता। उसी के समानांतर, कुछ दूरी पर एक पतली, उबड़-खाबड़ सड़क थी, जहाँ से गुजरते ही धूल और कंकड़ चेहरे पर चिपक जाते।

राजमार्ग की चकाचौंध में बड़े-बड़े मॉल, ऊँचे दफ्तर, और रईसों के महल थे। वहीं, दूसरी सड़क के किनारे छोटी-छोटी झुग्गियाँ, हाथ ठेले, और पसीने में डूबी मेहनतकश जिंदगियाँ थीं।

सुनील, एक 18 साल का लड़का, हर सुबह उस उबड़-खाबड़ सड़क से निकलकर, राजमार्ग के किनारे बने होटल में काम करने जाता। होटल की खिड़की से वह अक्सर देखता कि कैसे उसी राजमार्ग पर उसकी उम्र के लड़के महँगी...