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जोरू का गुलाम
*जोरू का गुलाम* ये संबोधन उस व्यक्ति को किया जाता हैं जो अपनी पत्नी के गृहकार्य में मदद करता है।ये ताने और उलाहना के बाद उस विवाहित युगल जोड़े के मन के भावों को व्यक्त करने की कोशिश इस कहानी के माध्यम से की गई।🙏

" जोरू का गुलाम "
"जब भी घर आती हूं ,ये मनोज रसोई में ही घुसा रहता है।राधा को कुछ काम आता भी है या नहीं"।ससुराल से मायके आई मीरा ने पैर पटकते हुए अपनी मांँ से कहा।
राधा और मनोज की शादी को 10 साल हो गए,उनके दो बच्चे भी हैं।मीना, मनोज की बड़ी बहन है,जिसका ससुराल इसी शहर में है।महीने पंद्रह दिन में वह मायके आती हैं और एक,दो दिन ठहर कर चली जाती हैं।
लेकिन आने और जाने के बीच ये राधा मनोज की भरपूर खिंचाई करती है।कभी कभी तो लगता जैसे मीना, राधा और मनोज को ताना देने ही मायके आती है।
मीना की बात सुन कर मुंह बनाते हुए मांँ बोली_"तुम तो कभी कभी देखती हो हम तो रोज देखते हैं ये नौटंकी।पता नहीं किस पर गया है ये मनोज।तेरे बाबूजी तो कभी एक लोटा भी यहां से वहां नहीं रखते थे,और ये है कि रसोई से बाजार तक सारे काम कर देता है।"जोरू का गुलाम "कहीं का।मेरा तो खून जल जाता है इसको देख कर।
"हांँ , माँ ! तुम्हारे जमाई भी...