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संक्रांति काल - पाषाण युग ६
ऐसे ही आराम से जीवन कट रहा था । आठ वर्ष गुजर गए जादौंग और अम्बी के साथ रहते हुए । अम्बी ने जादौंग के संसर्ग से  चार बार प्रजनन के द्वारा तीन पहली संतानों के अतिरिक्त आठ संतान और उत्पन्न की । उनकी कुल ग्यारह संतानों मेंं चार मादा व सात पुरुष संतान हैं । ये संख्या तेरह होती यदि अंतिम दो संतान जन्म लेते ही मर ना गई होती।


सदमा

इस बार अम्बी की गर्भावस्था के दौरान जादौंग के स्वभाव में अचानक बहुत ज्यादा बदलाव आ गया था। हमेशा परिवार के साथ खुश रहने वाला जादौंग , अचानक अपने आप मेंं खोया हुआ रहने लगा । ना वो अम्बी से ही बात कर रहा था ,ना ही बच्चों के साथ खेलता ।

अम्बी गर्भवती होने के बाद भी अपने सभी कार्य तत्परता से करती और बच्चों को भी वन में ले जाकर जड़ी बूटियों तथा कंद, मूल , फलादि की पहचान करवाती और दोपहर तक उन्हें एकत्रित कर वापस गुफा पर आ जाती थी। उसके पश्चात भी थकान को चेहरे पर नहीं आने देकर जादौंग का स्वागत प्रफुल्लित होकर करती , मगर जादौंग के बर्ताव में रूखा -पन उसे तोड़ देता था।बात बात पर उन दोनों के मध्य विवाद उत्पन्न होने लग गए ।

उस दिन अम्बी और जादौंग में बच्चों के कार्य बांटने पर विवाद हो गया था। अम्बी चाहती थी कि उसकी चारों मादा संतान खाना पकाने के साथ साथ शिकार करना भी सीखें ,पर जादौंग का मन इस पर सहमत नहीं था। वह भी शायद पुरुषों वाला दंभ पालने लग गया था। विवाद इतना बढा कि कई दिनों तक दोनों ने एकदूसरे के साथ सोना ही नहीं वार्तालाप भी बंद कर दिया ।

पर अम्बी के नारी हृदय में जादौंग के चेहरे पर तनाव और दुख देख करुणा उत्पन्न होने लगी और अपने अहं को त्याग उसने विचार किया कि आज जादौंग को पहल करके मना लेगी। रात गहराने पर भी जब जादौंग वन से वापस नहीं आया तो अनिष्ट की आशंका से अम्बी का दिल घबराने लग गया ....पूरी रात वह तारों को देखती रही ।


जब भी नींद आने लगती किसी पत्ते की आहट में जादौंग का अंदेशा कर उठ बेठती। बच्चे उसे घेरकर निश्चिंत सो...