...

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बेटी से बहू बनने का सफ़र....
लोग खुश थे.. मैं असमंजस में थी,
मैरी शादी हो रही थी.. घर में सभी उत्साहित थे,
इकलौती थी.. बड़े अरमानों नाज़ नखरों से पली थी,
ख़्वाब बहुत ऊंचे.. जेहन में बचपन से धर गए थे,

सब का शायद यही हाल होता है
एक दिन बेटियों को.. छोड़ अपना घर पी के घर जाना ही होता है,
कुछ शायद नसीब वाली होती है,
लड़का जिनका पहले से ही जाना पहचाना होता है,
कुछ मुझ सी होती हैं..
जिनकी शादियां को मां बाप ढूंढ़.. बड़े अरमानों से उन्हें विदा करते है.

मंगलकामना सब मिल करते है.. ख्याल रखेगा बन्ना बस यही दुआ ईश्वर से करते हैं..
घड़ी ज्यों ज्यों नज़दीक आ रही थी रस्में सारी मां...