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सम्बंध की परख बातचीत से
सम्बन्धों की समीपता की परख

गहन मनोवैज्ञानिक अध्ययन बताते हैं कि पारस्परिक सम्बन्धों में तारतम्यता (कनेक्टिविटी) की समीपता और समानता अनेक बातों पर निर्भर करती है। यह तारतम्यता गुणात्मक ऊर्जागत स्थितियों की समानता और असमानता पर भी निर्भर करती है। लेकिन इसके भी गहरे अर्थ हैं। यह प्रत्यक्ष ऊर्जागत स्थितियों की समानता और असमानता पर निर्भर भी करती है और यह अप्रत्यक्ष ऊर्जागत स्थितियों की समानता और असमानता पर भी निर्भर करती है।

पारस्परिक संबंधों की तारतम्यता की प्रत्यक्ष ऊर्जागत स्थितियों के बारे में भी कुछ का तो मनुष्य को सचेतन रूप से पता चल सकता है और कुछ का सचेतन रूप से पता नहीं चल सकता है। अप्रत्यक्ष ऊर्जागत स्थितियों के बारे में मनुष्य को सचेतन रूप से कुछ भी पता नहीं चल सकता है। इसलिए जिनका हमें पता नहीं चलता है उसे हम अविनाशी विश्व ड्रामा की इनबिल्ट स्थिति पर छोड़ देते हैं।

सम्बन्धों की तारतम्यता की समीपता और समानता की स्थितियां वास्तव में बहुत जटिल होती हैं। वैसे इसके बारे में कुछ भी स्पष्ट कहा नहीं जा सकता है। मनोविज्ञान इतना गहरा है कि अनुमान और अंदाजे से ही कुछ कहा जा सकता है। जिसने भी कहा है वह केवल उनकी अंतर्दृष्टि के अनुमानित इशारे ही उन्होंने कहे हैं। लेकिन फिर भी इस संदर्भ में सबसे सहज और महत्वपूर्ण समझने वाली बात यह है कि यदि पारस्परिक सम्बन्धों में बातचीत में दोनों तरफ से परस्पर सहजता (कंफर्टेबल) अनुभव हो तो इस अर्थ है कि यह समीप और समान होने की स्थिति है। बाकी गुणात्मक स्थितियों की समानता इस स्थिति में सहज समायी हुई रहती है। सम्बन्धों की समीपता की यह विशेष परख होती है। यदि पारस्परिक बातचीत में सहजता (कंफर्टेबल) अनुभव नहीं हो तो फिर तारतम्यता की शेष सभी ऊर्जागत स्थितियों की बातें फीकी पड़ जाती हैं।