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मखमल में टाट का पैबंद
#हिंदी साहित्य दर्पण
#लघुकथा
#शीर्षक - मखमल में टाट का पैबंद
स्वरचित - नन्द गोपाल अग्निहोत्री
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दो भाइयों के बीच एकलौती संतान ।
पाँच वर्ष की आयु आते आते पिता का देहांत होजाता है,
माता कैंसर पीड़ित आठवें वर्ष स्वर्ग सिधार जाती है ।
अपनी संतान तो थी नहीं, चाचा चाची ने माता-पिता से बढ़कर अपनी ही संतान समझ पालन-पोषण किया ।
थोड़ी सी जमीन थी, जी तोड़ परिश्रम कर पढा लिखा कर योग्य बनाया ।
अब वह बड़े शहर में उच्च पदस्थ अफसर था, स्वेच्छा से शादी की ।
चाचा चाची बहुत उत्साहित थे, नयी बहू आएगी ।
परंतु एक आघात लगा जब उसने कहा -
देखिए ऊँचे लोग हैं लड़की वाले, इधर मेरे साथ भी बड़े बड़े अफसर जाएंगे बारात में, इसलिए आपका बारात जाना उचित नहीं होगा ।
कहाँ सारे सूटेड बूटेड पांचसितारा होटल में खाने वाले,
और आप घुटने से ऊपर धोती पहने, मेरी बेइज्जती हो जाएगी ।
चाचा जी ने कोई जवाब नहीं दिया मन में सोचा -
" सच में मखमल में टाट का पैबंद ही तो लगूंगा मैं "
© Nand Gopal Agnihotri